Category: अगला-कदम
स्थिति
उत्कृष्ट संज्ञी के ही । जैसे मोहनीय ,संज्ञी के 70 कोड़ा कोड़ी सागर पर एक इंद्रिय के एक सागर से अधिक नहीं । पाठशाला
स्थिति बंध
प्रकृतियों का जघन्य स्थिति बंध, उनकी व्युच्छुत्ति के समय होता है । करूणानुयोग दीपक – 60
प्राण
संज्ञी के दस प्राण, पर्याप्तक की अपेक्षा कहा है । अपर्याप्तक अवस्था में तो सात प्राण (मन बल, वचन बल तथा श्वासोच्छवास बिना) ही होते
छठा काल
इसमें सम्यग्दर्शन नहीं होता है । कारण ? यहाँ अवधिज्ञान नहीं, सो पश्चाताप नहीं । जातिस्मरण नहीं, सो निमित्त नहीं । बाई जी
गुणस्थानों में सम्यक्त्वादि
चौथे गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व लब्धि तथा केवली के उत्कृष्ट (परभावगाढ़), श्रुत केवली के अवगाढ़ सम्यक्त्व होता है । ऐसे ही क्षायिक चारित्र में बारहवें
स्त्री-लिंग छेदन
एक बार स्त्री से पुरुष बनने को लिंग-छेदन नहीं कहते, हमेशा हमेशा के छेदन को कहते हैं – जैसे सीता का लिंग-छेदन । क्या पुरुषों
निधत्ति/निकाचित
ऐसे कर्मों का स्वभाव देवदर्शन से तथा 9 वें गुणस्थान में जाने से समाप्त हो जाता है तथा यूँ कहें कि – अलग अलग कर्म
आत्मानुभूति
सम्यग्दर्शन होने पर भी निचले गुणस्थानों में आत्मानुभूति क्यों नहीं होती ? कषाय की उपस्थिति में कषायानुभूति ही होगी, आत्मानुभूति नहीं ।
निश्चय नय और आस्रव
निश्चय नय से आस्रव की परिभाषा नहीं बनती, क्योंकि निश्चय नय शुद्ध को ही विषय करता है । पाठशाला
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