Category: अगला-कदम
कालाणु
1, 1 काल, अणु के बराबर होता है, इसीलिये उसे कालाणु कहते हैं । कालाणुओं के बीच जगह नहीं होती है । ये Cube के आकार
तैजस/आहारक
इन शरीरों के निकलते समय औदारिक वर्गणाओं का अनुदय और अनुबंध रहता है । इस समय तैजस/आहारक वर्गणाओं का कार्मण वर्गणाओं से ही संबंध होता
विग्रह गति में पर्याप्तियाँ
विग्रह गति में सब जीवों को अपर्याप्तक ही माना जाता है क्योंकि पर्याप्तक/अपर्याप्तक के अलावा किसी भी जीव की तीसरी अवस्था नहीं होती है ।
कारण/कार्य तथा निमित्त/नैमित्तिक
कारण/कार्य व्यवस्था एक द्रव्य में, निमित्त/नैमित्तिक दो द्रव्यों के बीच में ।
क्षपक सम्यकचारित्र
क्षपक श्रेणी में 8 से 10 गुणस्थान में उपचार से क्षायिक सम्यकचारित्र ही मानना होगा क्योंकि उपशम, क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन तो हो नहीं सकते । 12
सकाम निर्जरा
सविपाक को ही सकाम निर्जरा कहते हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
कषाय
कर्मबंध में बड़े कारण मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद होते हैं तो कषाय को इतना बुरा क्यों माना जाता है ? पहले तीन कठिन हैं, कषाय पर
निद्रा
3 तीव्र निद्राओं के उदय में सम्यग्दर्शन प्रारम्भ नहीं होता । ( पर सत्ता में 9 गुणस्थान तक तथा उदय 6 गुणस्थान तक) पर निद्रा और प्रचला
धर्मध्यान
अपाय विचय “कारण” है, उपाय विचय “करण” है । धर्मध्यान के 4 भेदों में दोनों पर्यायवाची/एक भेद कहे गये हैं, 10 भेदों में अलग अलग
धर्म/अधर्म की सहकारता
हर प्रदेश पर धर्म और अधर्म विद्यमान हैं, तो जीव/पुदगल चले या रुके ? दोनों ही उदासीन हैं, जीव/पुदगल चलना चाहें तो धर्म द्रव्य सहकारी
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