Category: अगला-कदम
सम्यग्दर्शन/धर्म व्युच्छित्ति
धर्म व्युच्छित्ति के काल में सम्यग्दर्शन नहीं होता है, जैसे पहले, दूसरे, तीसरे (हुंड़ा में तीसरे में होता है) कालों में, चौथे काल के व्युच्छित्ति
हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद
क्या सब हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद एक से ही होते हैं ? आगम में हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद बतायें हैं, अन्य कालों में कैसे अपवाद होते हैं,
असाता
दु:ख का वेदन कराने के अलावा (असाता का उदय), सुख की सामिग्रियों का नाश भी करता है । इसमें अंतराय का उदय भी सहयोग करता
अनंत
काल पर्यायात्मक अनंत है, जीव द्रव्यात्मक । पं. श्री मूलचंद्र लुहाड़िया जी
कर्म बंध
कहते हैं – कर्म कर्म को खींचते हैं । पर चौदहवें गुणस्थान में तो कर्म सत्ता में हैं, पर आश्रव नहीं ? कारण – योग/निमित्त
संसार व लोक भावना
संसार भावना – भावनात्मक, चार गति, रागद्वेष, लोक भावना – क्षेत्रात्मक , छ: द्रव्यों के बारे में ।
आर्यिका
संयम लब्धि सर्वोत्कृष्ट, संयमासंयम लब्धि उस पुरूष श्रावक की, जो मुनि बनने के सम्मुख खड़ा है ।
काललब्धि/पुरूषार्थ
निमित्तपरक – विधान में काललब्धि की मुख्यता होती है, उपादान – परक में पुरूषार्थ की ।
पल्य/सागर
पल्य , 45 अंक प्रमाण होता है । सागर=10 कोडा कोडी पल्य का । बाई जी
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