Category: अगला-कदम

तीर्थंकर प्रकृति बंध

नरक में 2 पर्याप्तियाँ पूर्ण होते ही तीर्थंकर प्रकृति बंध शुरू होता है । बिना करण के सम्यग्दर्शन, फिर तीर्थंकर प्रकृति बंध शुरू, पहले गुणस्थान

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भगवान में आत्मा

14वे गुणस्थान तथा सिद्धों की आत्मा, पूर्व शरीर से कुछ कम, क्योंकि नामकर्म का उदय 13वे गुणस्थान तक ही होता है । पाठशाला

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वैक्रियक शरीर

चक्रवर्ती का वैक्रियक शरीर उनके औदारिक शरीर से निकलता है इसीलिये इन सब शरीरों से संतान भी पैदा होती रहती हैं। बाई जी

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रागादि परिणाम

अशुद्ध निश्चय नय से ये आत्मा के ही होते हैं ,पौदगलिक नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी (जैसे सम्यक् मिथ्यात्व, पानी मिला दूध है, पानी

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कारण/कार्य

आहार संज्ञा ( जन्मजन्मांतरों तक दु:ख का कारण है);  क्षुधा-परिषह ( कुछ समय के लिये है), कार्य  है । वेद, आत्मा (अशुद्ध) के परिणाम हैं; मैथुन

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अनाहारक

गत्यानुपूर्वी की उदीरणा के समय अनाहारक, केवली स. घा. और १४ वा गुणस्थान ,अपवाद  । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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काललब्धि

अलग अलग जीवों के पुरूषार्थ अलग अलग, सो उनकी काललब्धि भी अलग अलग । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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संस्थान विचय

6 गुणस्थान वाले मुनिराज को ही, क्योंकि जो प्रत्यक्ष नहीं दिखता, उसके लिये श्रद्धा अधिक चाहिये । चिंतन

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मंगल आशीष

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September 16, 2015

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