Category: अगला-कदम

बंध

मोह (दर्शन मोहनीय से मिथ्यात्व, चारित्र मोहनीय से अविरति, प्रमाद, कषाय) तथा योग से ही बंध होता है । पाठशाला

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बंध

एक भेद है – “अनादि वैस्रिसिक* बंध” धर्म, अधर्म और आकाश, तीनों का परस्पर संबंध । कालाणुओं का भी ऐसा ही बंध है क्योंकि उनका

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कर्म/नोकर्म

कर्म – आत्मा के योग परिणामों के द्वारा किया जाता है । नोकर्म – कर्म के उदय से होने वाले औदारिक आदि रूप पुदगल परिणाम, जो

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परमाणु में गमन

मंदगति से परमाणु एक समय में – एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक गमन करता है तथा तीव्र गति से एक समय में चौदह राजू

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मन:पर्यय ज्ञान

मन के आलम्बन से जाना जाता है तो मतिज्ञान क्यों नहीं कहा ? चंद्रमा को देखने आकाश की साधारण अपेक्षा होती है, पर है तो

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आहार संज्ञा

स्वर्ग और नरक में भोजन/मिट्टी बहुत बहुत काल के बाद खायी जाती है, तो आहार संज्ञा हर समय कैसे ? आहार संज्ञा छ्ठवें गुणस्थान तक

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असिद्धत्व

अनादि कर्मबद्ध आत्मा के 10 वें गुणस्थान तक आठों कर्मों के उदय से असिद्ध पर्याय होती है । 11, 12 वें में मोहनीय के अलावा

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लेश्या

सब जीवों की द्रव्यलेश्या विग्रहगति में शुक्ल ही होती है । अपर्याप्त अवस्था में कपोत । भाव लेश्या छहों हो सकतीं हैं । पं. रतनलाल

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मंगल आशीष

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