Category: अगला-कदम
तीर्थंकर-प्रकृति
तीर्थंकर-प्रकृति घोर तप करने से नहीं बंधती बल्कि अपाय और विपाक-विचय-धर्मध्यान से बंधती है ।
निद्रा
प्रश्न : कोई जीव अधिक से अधिक कितने समय तक सो सकता है या जाग्रत रह सकता है ? उत्तर : अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा नहीं,
अणु की गति
अणु व्याघात ( अवरोध ) के अभाव में एक समय में लोक-पर्यन्त, 14 राजू जाते हैं, इसे अविग्रह गति कहते हैं ।
गति
शुद्ध जीव (सिद्ध), शुद्ध पुदगल (परमाणु) सीधी गति ही करते हैं । कर्म सहित जीव तथा स्कंध वक्र गति भी करते हैं ।
शुद्धोपयोग
मुनि पर्याय के सहकारी कारणभूत आहार, निहार को तथा शुभ-क्रियाओं को भी शुद्धोपयोग कहा है । प्रवचनसार टीका – श्री अमृतचंद्र सूरी
षट्गुणी हानि/वृद्धि
षट्गुणी हानि वृद्धि होने पर भी वस्तु कम क्यों नहीं होती ? षट्गुणी हानि और षट्गुणी वृद्धि एक समय में एक साथ होती है, इसलिये
लेश्या
द्रव्य की अपेक्षा सयोग केवली के छहों लेश्यायें कैसे ? द्रव्य लेश्या शरीर का रंग है और केवली के शरीर के सारे रंग होते हैं
तैजस और कार्मण शरीर
तैजस और कार्मण शरीरों का सम्बंध आत्मा के साथ अनादिकाल से भी और सादि भी । क्योंकि पुरानी कर्म-वर्गणायें आत्मा से अलग होती जाती हैं
मस्करी
भगवान महावीर के समय में दिगम्बर मुनि हुये । पर मिथ्यात्व और मान कषाय कि वज़ह से उन्होंने बहुत से मिथ्यामत चलाये ।
कपाट-समुदघात
कपाट-समुदघात के समय शरीर की कापोत-लेश्या होती है । औदारिकमिश्र-काययोग में हमेशा कापोत-लेश्या होती है । कार्मण-काययोग में शुक्ल-लेश्या ही होती है ।
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