Category: अगला-कदम
संहनन
पांच इंद्रिय जीवों के सम्मूर्च्छन अपर्याप्त अवस्था में संहनन नहीं होता ।
क्षायिक-ज्ञान
क्षायिक-सम्यग्दर्शन के साथ साथ क्षायिक ज्ञान भी होगा क्या ? ज्ञान, क्षायिक-सम्यग्दर्शन के साथ साथ, सम्यक रूप हो जाता है ।
अनिवृत्तिकरण
एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा निवृत्ति या विभिन्नता जहां पर नहीं होती, वे परिणाम अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं ।
कुलकर
12वें कुलकर तक जुगलिया पैदा हुये थे , 13 वें कुलकर ,प्रसन्नजित अकेले पैदा हुये थे , बाद में 14 वें कुलकर नाभिराय और मरूदेवी भी
उत्कृष्ट आयु
चतुर्थ काल में उत्कृष्ट आयु 1 कोटि पूर्व होती है, पर हुंड़ावसर्पिणी की वज़ह से आदिनाथ भगवान की 84 लाख पूर्व ही थी यह
सम्यग्दृष्टि के अल्पायु
अनुत्तर, अनुदिश तथा ग्रैवेयिक के देव मरण के बाद जघन्य ,आठ वर्ष + अंतर्मुहूर्त की आयु पाते हैं । इस दौरान कदलीघात नहीं होता ।
चैत्य-वृक्ष
चैत्य-वृक्ष वनस्पतिकाय नहीं, पृथ्वीकाय होते हैं । ये जीवों की उत्पत्ति और विनाश में भी निमित्त बनते हैं, ये जीव भी पृथ्वीकायिक ही होते हैं।
अवधिज्ञान
देवताओं के अवधिज्ञान की ऊपर की सीमा,उनके विमान की ध्वजदंड तक ही होती है, नीचे की दिशा में, सीमानुसार । भवप्रत्यय वालों के क्षेत्रानुगामी अवधिज्ञान
क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन
यदि बद्धायुष्क ने नरक आयु बांध ली हो तो सम्यग्दर्शन तो छूटेगा ही, वह जीव सातवें नरक तक जा सकता है । तैजस, क्षायोपशमिक-सम्यग्दॄष्टि के
नित्य/ध्रौव्य
नित्य का अर्थ ध्रुव है । द्रव्यों का कभी विनाश नहीं होता – यह नित्य है । अनादि पारिणामिक स्वभाव का उदय तथा व्यय नहीं
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