Category: अगला-कदम

द्रव्य-इंद्रिय

स्पर्शन → अनेक प्रकार वाली (1 इंद्रिय से 5 तक)। रसना → खुरपा की Shape, जिव्हा बाह्य उपकरण। घ्राण → अतिमुक्ता पुष्प (तिल का फूल)।

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मतिज्ञान

पर्याय प्रति समय परिवर्तित होती रहती है। जब एक ही वस्तु को दुबारा देखते हैं तो वस्तु बदल चुकी होती है। सो ज्ञान हर बार

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आयुबंध

कषाय के उदय स्थानों में 8 मध्यम अंश हैं जो आयुबंध के योग्य हैं। हर लेश्या में – शिला, पृथ्वी, धूलि, जल जैसी तीव्रता, तो

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मूर्ति

पाषाण की मूर्ति वास्तव में दिगम्बरत्व का असली प्रतीक है, इसमें अवांछनीय पदार्थ (छाँट-छाँटकर) निकाल दिया जाता है। जबकि धातु की मूर्ति में संग्रह होता

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द्रव्य लेश्या

वर्ण-नामकर्म के उदय से शरीर का वर्ण होता है। इसे लेश्या इसलिए कहा क्योंकि यह शरीर का रंग बनाती है और रंग से गोरे/ काले

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अरहंत के मन

संसारी के वचन, मन पूर्वक ही। ऐसा मन सयोगी के नहीं, इसलिये मन उपचार से कहा क्योंकि वचन की प्रवृत्ति तो हो रही है। उपचार

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स्व/स्वरूप संवेदन

स्व संवेदन… मैं हूँ/ आत्म संवेदन। स्वरूप संवेदन जैसे गर्म पानी जो उसका स्वभाव नहीं है (पर वर्तमान में उसका स्वरूप गर्म है) मुनि श्री

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षटस्थान हानि

कृष्ण आदि लेश्या में षटस्थान हानि – 1. अनंतभाग हानि 2. असंख्यात भाग हानि 3. संख्यात भाग हानि और और बडी हानि – 4. संख्यात

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कषाय और आयुबंध

आयुबंध ना तो उत्कृष्ट कषाय में नाही उत्कृष्ट विशुद्धता में होती है। तद्भव मोक्षगामियों की विशुद्धि उत्कृष्ट के करीब होती है, इसीलिये शायद उनके आयुबंध

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क्षयोपशम

क्षयोपशम में जब उदयाभावी क्षय होता है तो उपशम क्यों ? योगेन्द्र उपशम में कर्म की शक्ति कम करके उदय से पहले अभाव किया जाता

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मंगल आशीष

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