Category: अगला-कदम

षटस्थान हानि

कृष्ण आदि लेश्या में षटस्थान हानि – 1. अनंतभाग हानि 2. असंख्यात भाग हानि 3. संख्यात भाग हानि और और बडी हानि – 4. संख्यात

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कषाय और आयुबंध

आयुबंध ना तो उत्कृष्ट कषाय में नाही उत्कृष्ट विशुद्धता में होती है। तद्भव मोक्षगामियों की विशुद्धि उत्कृष्ट के करीब होती है, इसीलिये शायद उनके आयुबंध

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क्षयोपशम

क्षयोपशम में जब उदयाभावी क्षय होता है तो उपशम क्यों ? योगेन्द्र उपशम में कर्म की शक्ति कम करके उदय से पहले अभाव किया जाता

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आयुकर्म

आयुकर्म कुछ अपेक्षाओं से बहुत खतरनाक – 1. एक बार बंधा तो बदलेगा नहीं। 2. इसका उपशम / क्षयोपशम / क्षय नहीं होता है। मुनि

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विभंग ज्ञान

इसका अर्थ… मिथ्यात्व या अनंतानुबंधी के उदय से अवधिज्ञान की विशिष्टता/ समीचीनता भंग होकर अयथार्तता आ जाती है। जीवकाण्ड-गाथा- 307

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आयुबंध

शैल समान क्रोध में भी आयुबंध हो सकती है, बस इसके उत्कृष्ट में आयुबंध नहीं होगी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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संक्लेश

संक्लेश परिणामों से बार-बार अपर्याप्तक निगोदिया बनते हैं। उनका ज्ञान जघन्यतम होता है। यानि संक्लेश, अज्ञान के अनुपात में होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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संक्लेश

तीन मोड़े लेने वाले जीव का संक्लेश, उत्कृष्ट पहले मोड़े के समय तथा जघन्य योनि स्थल के करीब पहुँचने पर होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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मति/श्रुत ज्ञान

शब्द यदि अपरिचित है जैसे सुमेर (क्योंकि जिनवाणी से सुना है, देखा नहीं) तो अर्थ का ज्ञान; यदि परिचित है तो अर्थ से अर्थांतर का

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कषायों की शक्तियाँ

लोभ की शक्तियाँ – हिमराग, ओंगन, शरीर मल, हल्दी रंग (अपने आप उड़ जाता है), ऐसे ही हर कषाय की शक्तियाँ कही हैं। ये शक्तियाँ

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मंगल आशीष

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