Category: अगला-कदम
संक्रमण
ग्यारहवें गुणस्थान में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रमण नहीं होते । कर्मकांड़ गाथा 443
अवधिज्ञान
इसे सीमाज्ञान भी कहते हैं । यह अधोगति पुदगलों को अधिकता से ग्रहण करता है, याने नीचे के रुपी पदार्थों को ज्यादा जानता है ।
अवधिज्ञान/मन:पर्ययज्ञान
अवधिज्ञान तो पदार्थों को सीधी तौर से जानता है, पर मन:पर्ययज्ञान मन की पर्यायरुप से जानता है । स्याद्वाद
सातवां गुणस्थान
सातवें गुणस्थान में संसार से भिन्न और निवृत्तिआत्मक क्रियायें होती हैं । आत्मा से अभिन्न प्रवृत्तिआत्मक क्रियायें होती हैं । आचार्य श्री – ( सागर
कर्म का बटबारा
कर्म प्रकृतियों का एक भाग सर्वघाति को मिलता है तथा अनंत बहुभाग देशघाती को मिलता है । कर्मकांड़ गाथा : – 197
कर्म का बटबारा
( गाथा192 में कर्म के बटबारे के कम ज्यादा का Criteria ? ) जिस जिस कर्म की स्थिति अधिक, उसको अधिक भाग मिलता है ।
कर्म का बटबारा
( नीचे की गाथा में देखा कि कर्म का बटबारा सबसे अधिक वेदनीय कर्म को जाता है – इसका कारण ? ) वेदनीय सुख दुख
कर्म का बटबारा
जो भी कर्म हम करते हैं उनका बटबारा आठों कर्मों में होता है । आयु कर्म से ज्यादा नाम और गोत्र कर्म को, नाम और
पुदगल द्रव्य का ग्रहण
(नीचे की गाथा देखें – यह बात कैसे सिद्ध होगी कि जीव ने अनंत बार सब पुदगल परमाणुओं को ग्रहण किया है ?) आ.
पुदगल द्रव्य का कर्म रूप परिवर्तन
लोक के Total पुदगल द्रव्य का अनंतवां भाग ही कर्म रूप परिवर्तित होने योग्य है । आदि द्रव्य – जिसे जीव ने अतीत काल
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