Category: अगला-कदम
बहुरूपणी विद्या
बहुरूपणी विद्या से जो बहुत सारे रूप या सेना बनती है, उनमें आत्मायें होती हैं क्या ? यदि होतीं हैं, तो वह आत्मायें किसकी होतीं
सयोग केवली में
– क्षायिक लाभ से – नो कर्म वर्गणाओं का ग्रहण होता है । क्षायिक भोग से – गन्धोदक, पुष्पवृष्टि आदि होती है । क्षायिक उपभोग
आत्मा मूर्तिक/अमूर्तिक
आत्मा मूर्तिक – व्यवहार नय से, व्यवहार – वर्तमान की अपेक्षा से/उपचार से, Proof क्या है ? Anesthesia मिलने पर चेतनता पर असर होता है
संवर
आश्रव के होते हुये संवर नहीं होता । संवर – गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय और चारित्र से होता है । तत्वार्थ सुत्र टीका –
तीर्थंकरों में अंतराल
आदिनाथ भगवान 18 कोड़ा कोड़ी सागर अंतराल के बाद तीर्थंकर बने थे । महावीर भगवान के बाद अगले तीर्थंकर 84 हजार बर्षों बाद होंगे ।
अर्धपुदगल परावर्तन काल
अर्धपुदगल परावर्तन काल, द्रव्य परावर्तन काल का आधा होता है, पांचों परावर्तन का आधा नहीं । यह अपने आप में अनंत है । द्रव्य परावर्तन
कर्म
यदि बिना दी हुई वस्तु लेना चोरी है तो कर्मों का बिना आज्ञा लेना भी चोरी हुई ? नहीं, क्योंकि स्वर्ण आदि का आदान प्रदान
निकट भव्य
आ. पंचमनंदी जी ने – पंचविंशतिका में लिखा है कि हुंड़ावसर्पिणी के पंचम काल में जो जीव अपने आत्म कल्याण में प्रयत्नशील हैं, वह निकट
परिणाम/मनोयोग
परिणाम और मनोयोग में क्या फर्क है ? परिणाम आत्मा का विषय है, कर्म बंध में कारण नहीं, मनोयोग क्रिया है, कर्म बंध में कारण
साधू
साधू अहिंसक कैसे कहे जाते हैं ? हिंसा तो प्रमाद पूर्वक ही होती है और साधू प्रमाद रहित होते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
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