Category: अगला-कदम
देवों में परिग्रह/अभिमान
देवों में ऊपर – ऊपर परिग्रह और अभिमान आदि कम क्यों हैं ? ऊपर – ऊपर देवों में कषाय मंद होने से संक्लेश कम, इससे
शरीर
शरीर एक प्रदेशी नहीं होता, क्योंकि जघन्य से अंगुल के असंख्यात प्रमाण होता है । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी
बलभद्र
सारे बलभद्र मोक्ष नहीं जाते । ( बलदेव स्वर्ग गये ) पं.रतनलाल बैनाडा जी
काय
प्रदेशों के समूह को काय कहते हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी
मोह
भगवान को और समवसरण को बड़े बड़े ज्ञानी/क्षायिक सम्यग्दर्शी क्यों छोड़ कर चले जाते हैं ? मोह की वजह से, मोह के संसार में बड़ा
कल्पातीत
16 स्वर्ग के ऊपर के देवों को कहा जाता है । कल्प :- कल्पना भेदों की ( अलग तरह के देव ), भवनवासियों में
रोग
असाता के उदय से और असाता होती है, उससे —» शोक —» असाता के अनुभाग में वृद्धि —» रोग में वृद्धि । उपचार – समता
विग्रह गति
1. विग्रह याने शरीर, जो शरीर के लिये गति करे । 2. विग्रह याने विरूद्ध ग्रह, कर्म का ग्रहण करते हुये भी नोकर्म का
प्रदेश/परिमाण
लोह पिंड़ बहुत प्रदेश वाला तथा अल्प परिमाण वाला होता है, रूई अल्प प्रदेश वाली तथा महा परिमाण वाली होती है । तत्वार्थ सुत्र टीका
अनंत/संख्यात- भेद
अनंत के अनंत भेद होते हैं । संख्यात के संख्यात भेद होते हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी
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