Category: चिंतन

आत्म-सुख

खुशी में हंसते हुये आँखें बंद हो जाती हैं, दु:ख/भय में और खुल जाती हैं । सही तो है – जब बाहर से दृष्टि अंदर

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अनाधिकार चेष्टा

चन्द्रमा भी जब सूर्य के समय में अनाधिकार चेष्टा करके घुस आता है, तब निस्तेज हो जाता है । चिंतन

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सपने / लक्ष्य

सपनों के साथ पुरुषार्थ किया जाये तभी वे लक्ष्य में परिवर्तित हो पाते हैं ।

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निर्वाह और निर्वाण

जब वर्तमान में निर्वाह आराम से चल रहा है तो कल के निर्वाण की चिंता क्यों करें ? ताकि कम से कम, कल का निर्वाह

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भय

भय की जननी नकारात्मकता है । चिंतन

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कल्याण

जब तक (अपनी कमज़ोरियों के लिये) दूसरों को दोष देते रहोगे – उनके कल्याण और अपने अकल्याण की सम्भावनायें बढ़ती रहेंगी । चिंतन

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यथार्थ

दो मित्र नित्य नदी पर जाकर डुबकी लगाते थे । Deal थी कि सिक्के पहले मित्र को मिलेंगे और सूरज (जिसका प्रतिबिम्ब नदी में दिखता

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एक और एक ग्यारह

मकान के खंभे में लोहे की छ्ड़ें अकेले सीधी खड़ी भी नहीं रह पातीं, पर सीमेंट के साथ ऊँची ऊँची मंज़िलों को बना देती हैं

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आकर्षण

अज्ञानी का आकर्षण नवीन और विविधता की ओर होता है, इसीलिये उनमें अस्थिरता रहती है । ज्ञानी का पुरातन और स्थाईत्व की ओर रहता है

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पूर्ण विकास

खिले फूलों को देख खुश मत हो जाना, विकास की सार्थकता तो पराग पर से अंदर की पंखुड़ियाँ हटाना है/खुशबू बिखेरना है , संस्कारों की

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मंगल आशीष

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