Category: चिंतन
मोह
शराबी की लाल आंखों को दवा से ठीक नहीं किया जा सकता । मोह की लाली को हटाने के लिये ज्ञान की दवा पिलानी होगी,
बुज़ुर्ग
बुज़ुर्ग वे आईने हैं, जिनमें हम अपना भविष्य देख सकते हैं , उनको देखकर हम अपना भविष्य सुधार सकते हैं । जिन्होंने गल्तियाँ की हैं,
भाग्य/पुरूषार्थ
सर्दी ज्यादा होने पर गर्म ऊनी कपड़े भी ठंड़े लगते हैं, जैसे कोई काम नहीं कर रहे हों । पर ऊनी कपड़े हटाने पर पता
शांति / तूफान
अब तो तूफान से ज्यादा शांति से डर लगता है । तूफान तो आता है खत्म होने के लिये जबकि शांति आने पर तूफान आना
निर्जरा
धीरे धीरे टहलने से वज़न कम नहीं होता, बढ़ और जाता है । बिना तप करे, छोटे मोटे नियमों से कर्म कटते नहीं हैं बल्कि
अभिमान
यह सजीव में ही नहीं, निर्जीव में भी पाया जाता है । जैसे कपड़े, मुर्दे, आँख, नाक आदि की देखभाल ना करो तो वे बदबू/दर्द
मानना
किसकी बात मानें ? मन की ? मन तो मोह में मदहोश रहता है !! दूसरों की ? वे भी रागीद्वेषी हैं, सही सलाह कैसे
मोह/ज्ञान
मोह फोड़ा है, ज्ञान उसे ढ़कने वाला खुरंट, यदि ज्ञान रूपी खुरंट हटाते रहे तो घाव नासूर बन जायेगा । मोह की खुजलाहट तो होगी
ख़तरा
जिन जिन चीजों से जान का ख़तरा होता है, उनसे हम दूर रहते हैं न ? और जान है, आत्मा ! विषयभोग/कषाय आत्मा का घात
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