Category: चिंतन
शरीर / आत्मा
क्या हम ऐसी जगह को छोड़ना नहीं चाहेंगे जहाँ सड़न/ बदबू आना शुरू हो रही हो ? यदि हाँ, तो आत्मा मरते हुए शरीर को
अवस्थायें
1. दुष्टता – द्वेष रूप/ गंदा पानी 2. इष्टता – राग रूप/ सादा पानी 3. माध्यस्थता – वीतरागता रूप/ नमी रहित चिंतन
जीवन
डायरी के ऊपर और आखिर में जिल्द होती है। Solid/ निश्चित, इन पर कुछ लिख नहीं सकते। ऊपर बहुत कुछ पहले से लिखा रहता है
आत्मा में अस्पर्शन
आत्मा में अस्पर्शन, स्पर्शन नहीं ! पर वह शरीर को स्पर्श कर रही है ? आत्मा तो स्पर्श करती है, हम उसे स्पर्श नहीं कर
सुख
सुख चाहते हो तो सद्गृहस्थ बनो। सच्चा सुख चाहते हो तो साधु बनो। चिंतन
मोह
गधे को देखा, लगातार बोझा ढो रहा था, मार भी खा रहा था। पूरा जीवन उसका ऐसे ही निकलेगा। फिर कोई पूछेगा भी नहीं। हमारी
भात / बात
भात (भोजन) को देखभाल कर कि विषाक्त/ ज्यादा तीखा/ बदबूदार न हो, 32 बार मुँह में चबाया जाता है, तब शरीर को लाभकर होता है,
भाग्य/ पुरुषार्थ
भाग्य तो पापी के पास में भी होता है। पुरुषार्थ पुण्यात्मा के ही। चिंतन
भगवान से माँग
भगवान से बल मांगते हैं, क्या वे बल देते हैं ? कमज़ोर आदमी का स्मरण/ संगति से कमज़ोर होने लगते हैं। हनुमान भक्त युद्ध में “जय
धर्म की इमारत
दया/ सेवा नींव है। Ritual इमारत, Spirituality शिखर। बिना नींव के इमारत बनेगी नहीं, सिर्फ नींव इमारत कहलायेगी नहीं । बिना शिखर के धार्मिक इमारत
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