Category: वचनामृत – अन्य
GOD
“G” से Generator “O” से Operator “D” से Destroyer अपने लिये मैं ख़ुद तीनों हूँ। मुनि श्री मंगलसागर जी
जीना
प्रायः सुनते हैं –> “बच्चों के लिये जी रहे हैं।“ यानी पराश्रित/ चिंतित –> रोगों को निमंत्रण। सही –> अपने लिये जी रहे हैं –>
शास्त्र
Antique चीज़ें बहुमूल्य होती हैं। हमारे शास्त्र तो हजारों वर्ष पुराने हैं। इनका मूल्य तो आँका ही नहीं जा सकता। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी
मनोरंजन
मनोरंजन में दोष नहीं। मनोबंधन दोषपूर्ण है। मन बंधना नहीं चाहिये। आदत/ लत न पड़ जाये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
नियंत्रण
बाह्य नियंत्रण (काय, वचन) होने पर ही अंतरंग (मन) नियंत्रित हो सकता है। यदि माता-पिता घूमने के शौकीन हों तो बच्चा घर में कैसे रह
अनेकांत
पाँचों इंद्रियों के विषय अलग-अलग हैं। आपस में कोई संबंध नहीं। आत्मा सबको बराबर महत्त्व देती है। इन्हीं से वह संसार के सारे ज्ञान प्राप्त
मद
आजकल हर व्यक्ति में डेढ़ अक्ल है। एक खुद की, आधी पूरी दुनिया की अक्ल का जोड़। ब्र. भूरामल जी (आचार्य श्री विद्यासागर जी के
वैराग्य / तत्वज्ञान
वैराग्य से संसार छूटता है। तत्वज्ञान* से मोक्षमार्ग पर बने रहते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी * धर्म का ज्ञान।
साधना
पार्किंसंस रोग होने पर हाथ कंपने को रोकने के लिये कहते हैं –> “साधौ”। विचारों के चलायमानता को रोकने को साधना कहते हैं। मुनि श्री
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