एक राजा ने चित्रकारों की एक प्रतियोगिता कराई।
इसमें किसी ने खेत दिखाया, इतना सजीव कि गाय भ्रमित हो गई।
किसी ने फूल दिखाये तो तितलियाँ/भँवरे भ्रमित हो गये।
पर्दा हटाते ही ये सब होता था।
एक चित्रकार ने राजा को बोला कि वो खुद पर्दा हटायें, राजा हटाने लगा तो पता लगा कि वो पर्दा नहीं पेंटिंग थी, यानी राजा खुद भ्रमित हो गया।
ये पर्दा है काहे का ?
मोह का पर्दा, जो हम सबको खुद हटाना होगा,
और हम सारे के सारे भ्रमित हुए पड़े हैं।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (17 अगस्त 2024)
गृहस्थ चावल जैसा है, पूजा की सामग्री में पुजारी, घर में खिचड़ी, गरीब को दान करते समय साहूकार/ माँ रूप।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
कैसे तय करें कि हम उन्नति कर रहे हैं या अवनति ?
दूसरों से अपने बारे में Opinion लें। Negative Remarks आने पर उस व्यक्ति से यदि नाराज़ हो रहे हों तो अवनति, अपने से नाराज़ हो रहे हों तो उन्नति के पथ पर।
चिंतन
कमजोर ही अपने से कमजोर पर क्रोध करता/ कर सकता है।
क्रोध करने वाले को शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
यदि बड़े होकर संस्कारित नहीं रहे तो बदनाम कौन होगा ?
हमारी माँ।
बलि के पक्ष में कुतर्क… उस जानवर को तो मरना ही था। यहाँ मेरे हाथों मर गया !
मारने में तुम क्यों निमित्त बनो ?
अपने को निष्ठुर/ कठोर क्यों बनाओ ??
डॉ. ब्र. नीलेश भैया
नियम बने हैं, ताकि हम बने रहें।
होता यह है कि नियम बने रहते हैं, हम टूट जाते हैं।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
गटर का ढक्कन तभी उठाओ, जब गटर को साफ कर सकने की सामर्थ हो।
इसी तरह परनिन्दा/ दूसरों की बुराई तब करो जब बुराइयों को साफ करने की सामर्थ्य हो, अन्यथा यह भाव हिंसा होगी जो द्रव्य हिंसा से भी बुरी है।
क्योंकि भाव तो हर समय चलते रहते हैं।
हम अपने भाव तो सुधार नहीं पा रहे दूसरों के भाव कैसे सुधार सकते हैं ?
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (16 अगस्त 2024)
सर्विस करते समय दिल और दिमाग में कई बार संघर्ष होता है क्या करें ?
रेणु जैन-कुलपति
प्रशासनिक निर्णय लेते समय दिमाग से काम करें,
अपने मातहत लोगों के बारे में निर्णय लेते समय दिल से।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है।
अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
* नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन
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स्वतंत्रता को तारीख से बांधना भी एक अपेक्षा से दासता है।
अनादि से स्वतंत्रता तो हर जीव का स्वयं सिद्ध अधिकार है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी
ज्ञेय से ज्ञान
बड़ा, आकाश आया
छोटी आँखों में।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(दूसरी लाइन में (,) कॉमा के सही ज्ञान से अर्थ सही हो जाते हैं)
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे –
“स्व” को साफ करो,
“पर” को माफ करो,
“परम” को याद करो।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
(एकता- पुणे)
इस संसार का सबसे बड़ा जादूगर स्नेह(मोह) है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(जादूगर जो होता नहीं उसे सच करके दिखाता है। मोह भी अहितकारी को हितकारी दिखाता है, हितकारी को अहितकारी)।
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