ठंडे देश की एक चिड़िया देश छोड़ न पायी। ठंड में उसके पंख अकड़ गये, ज़मीन पर गिर गयी।
एक गाय ने उसके ऊपर गोबर कर दिया। गरमाहट से उसमें गति आ गयी और वह बोलने लगी। बिल्ली ने सुना गोबर हटाया और उसे खा गयी।
सीख –
1. तुम्हारे ऊपर हर गोबर फेंकने वाला दुश्मन नहीं होता तथा मुसीबत से निकालने वाला मित्र नहीं होता।
2. मुसीबत के समय वचनों पर नियंत्रण रखें।
(अपूर्व श्री)
व्रती शब्द वृत से बना है, जिसकी परिधि हो। परिधि को भी छोटा करते जाते हैं।
लगातार सुधार के कारण व्रत बोझल/ Boring नहीं लगते/ उत्साह बना रहता है। सुधार काय में तो होना कठिन है सो मन और वचन सुधारें।
ब्र.डॉ.नीलेश भैया
गुरु मिलता है सहजता और सरलता से।
रटी रटायी बातें नहीं कहता, देखी बात करता है।
राह को साफ (Clean) *सुथरा बनाता है।
(अंजली- जयपुर)
* सुथरा, स्पष्ट, शुद्ध (unambiguous)
उच्छृंखल घोड़े को साध दिया जाय तो बिना लगाम खींचे अपने घर को वापस आ जाता है।
ऐसा ही मन है।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
अक्षर/ शब्दों को लिखकर काटने/ मिटाने में भाव-हिंसा तथा अंकों को काटने/ मिटाने में ज्ञान के प्रति अविनय है।
मुनि श्री मंगल सागर जी
रोना हो तो हिंदी में, हंसना हो तो हिंदी में
जीना हो तो शांति से, मरना हो तो शांति से।
शांतिपथ प्रदर्थक
(शांति तभी मिलेगी जब हम अपने में/ अपनी भाषा/ अपने धर्म में आ जायेंगे)
हमारे सुख/ दुःख तथा कल्याण/ अकल्याण में प्रारंभिक/ मुख्य भूमिका कल्पनाओं की होती है।
1. गृहस्थ बार-बार हानि होने पर भी धनोपार्जन का पुरुषार्थ करता रहता है।
2. साधु हीन पुरुषार्थ होते हुए भी परीषह (कठिनाइयों) जय करने में महान पुरुषार्थ करते रहते हैं।
क्षु.श्री जिनेंद्र वर्णी जी
आँखों की पूजा आज तक किसी ने नहीं की, सब चरणों की ही पूजा करते हैं।
यानी दृष्टि नहीं, आचरण पूज्य होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
जो अपने को अकर्ता मानता है वह विनम्र होता है।
कर्ता मानने वाला ही अकड़ता है।
चिंतन
वनस्पति दो प्रकार की →
1. जो अपने फल खुले में रखते हैं/ पकने पर दूसरों के लिये गिराते रहते हैं जैसे आम, अमरूद।
इन वृक्षों की फल देने के बाद भी देखभाल, खाद/ पानी दिया जाता है।
2. जो अपनी सम्पदा को छुपाकर रखते हैं, आलू, प्याज। इनको जड़ से उखाड़ दिया जाता है।
ऐसे ही व्यक्ति → पहली किस्म वालों का सम्मान होता है। उनकी सब Help करते हैं। दूसरे किस्म वालों की यादें जड़ से समाप्त कर दी जाती हैं।
(अरविंद)
आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी ने अपनी पुस्तक की टीका लिखने के लिये एक पंडित जी से कहा। उन्होंने असमर्थता का कारण बताया… पहले मैं युवा था, टीका लिखने के लिये आधा किलो घी पीता था, अब उम्र बड़ी हो जाने के कारण इतना घी पचा नहीं सकता।
(विमल चौधरी)
भाग्य = पिछले साल का बीज।
पुरुषार्थ = बीज बोना, फसल की देखभाल करना।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
नींव में सोना डालने का औचित्य नहीं, चाहे नींव मंदिर की ही क्यों न हो।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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