अपने आप को 3 प्रकार से पहचाना जा सकता है ।
1. परछायीं देखकर, पर इसमें नाक/कान आदि नहीं दिखते जैसे परदेश की सीमा पर खड़े होकर उस देश को देखते हैं ।
ऐसे ही प्राय: हम धर्म करते हैं -बिना  चिंतन; मंथन के बिना नवनीत नहीं मिलता/देखा देखी (देखा + अदेखा) ।
2. प्रतिबिम्ब देखकर – विस्तृत दिखायी देते हैं । अपने को पहचान सकते हैं ।
3. ध्यान से – इससे अंतरंग का भी दर्शन होता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

भोगों के पीछे का अभिप्राय यदि दूषित है, तो वह दुर्गति में ले जाता है,
जैसे पुराने ऋषि(सनातन धर्म के) आश्रमों में पत्नियों के साथ रहते थे, तथा चक्रवर्ती राजाओं को बहुत सी लड़कियाँ दी जाती थीं पर वे उनका पत्नी के रूप में चयन नहीं करते थे, ना ही Rejection.

मुनि श्री अविचलसागर जी

वृद्धावस्था में मकान बेचकर उसी में किरायेदार बन कर रहें, इस commitment के साथ कि जब खाली करने को कहा जायेगा तब खाली कर दूंगा ।
जिस शरीर रूपी मकान को हम अपना मानते आ रहे थे अब उसी में किरायेदार की तरह रहो और मृत्यु का आवाहन आते ही आराम से शरीर छोड़ने को तैयार रहो ।

चिंतन

एक बार बिलग्रेट्स से पूछा – क्या आपसे भी ज्यादा धनवान कोई है ?
बिलगेट्स – हाँ, एक अखबार बेचने वाला मुझसे भी ज्यादा धनवान है ।
कैसे ?
शुरु शुरु में एक बार अखबार खरीदने के लिए मेरे पास खुल्ले पैसे नहीं थे ।
उसने दोनों बार मुझे मुफ्त में अखबार दे दिया था ।
अब मैं उसे कुछ भी देने गया तो उसका ज़बाब था – आपकी सहायता मेरी सहायता की बराबरी नहीं कर सकती है । मैैंने गरीबी में सहायता की थी, आप अमीरी में करना चाहते हो ।

Moral – सहायता के लिये धनवान होने का इंतज़ार मत करो

(शशी)

सेठ की कोठी के पास ही गरीब की झोंपडी थी ।
गरीब लडके की माँ मरी तो उसके लड़के ने अपने शब्दों में दुःख ज़ाहिर किया कि… तूने पिता के मरने के बाद दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा करके मुझे पाला आदि, अब जब मेरा करने का समय आया, तू चली गयी…।
लोगों ने उसकी भावनाओं की बहुत तारीफ़ की ।
सेठानी के मरने पर उस सेठ के लडके ने भी अपनी तारीफ़ कराने के लिये गरीब लड़के वाले शब्द ही दोहरा दिये… !

हम भी तो  भगवान की स्तुति दूसरों के शब्दों में ही करते हैं,
चाहे स्तुति रचयिता के हालात हमारे लिये उपयुक्त हों या न हों ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

सिनेमा देखते हुये एक व्यक्ति मूंगफली खा खा कर छिलके बगल वाले की जेब में डालता जा रहा था ।
दूसरी तरफ बैठे मित्र ने कहा – उसे पता लगते ही, तू पिटेगा !
तुझे पता लगा क्या ?
(वह मित्र की जेब छिलकों से पहले ही भर चुका था)

विषय-भोगों में ऐसी ही तल्लीनता रहती है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

संसार में देखभाल कर विश्वास करने की सलाह दी जाती है हालाँकि आइसक्रीम खाते समय यदि तुम गाय के बारे में प्रश्न करने लगे तो आइसक्रीम पिघल जायेगी, उसका आनंद नहीं ले पाओगे ।
परमार्थ में तो सिद्धांत ही यही है >> पहले विश्वास करो, फिर आनंद लो ।

(डाॅ.पी.एन.जैन)

कार का इंजन, फेल/बंद होने के काफी देर पहले से गर्म होना शुरु हो जाता है । यदि समय रहते पानी डाल कर ठंडा कर लिया तो गाड़ी चलती रहेगी ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

अनुभव दूसरों का भी होता है(काम स्वयं के भी आता है) जैसे ज़हर से दूसरों को मरते देखकर होता है ।
अनुभूति स्वयं की ही जैसे गुड़ का स्वाद ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728