“इक्कीस” (2021) = इक ईस (एक ईश)

आचार्य श्री विद्या सागर जी
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(2) एक में याद है, दूसरे में आस, एक को है तज़ुर्वा, दूसरे को विश्वास…
दोनों जुड़े हुए हैं ऐसे, धागे के दो छोर के जैसे, पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते हैं कैसे !
जो पिछला वर्ष छोड़ के जाता है, उसे नववर्ष अपनाता है, और जो पिछले वर्ष के वादे हैं, उन्हें नववर्ष निभाता है…
लेकिन गतवर्ष से नववर्ष बस १ पल मे पहुंच जाते हैं !
गतवर्ष की जुदाई को दुनिया ने एक त्यौहार बना रखा है..!!

😊 _ђɑρρý New ýεɑя _ 😊

(अनुपम चौधरी)
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(3) “0” समाप्त हुआ, “1” प्रकट …प्रगति का संकेत ।
बुराइयाँ “0” हों, हमारे “0” होने के पहले,
हर-1 दिन, “1” अच्छाई जुड़े हम सबके जीवन में…1.1.21

चिंतन

सिर्फ़ अनर्थ-दंड* से बचकर ही गृहस्थ एकेंद्रिय जीवों** की रक्षा कर सकते हैं ।

* बिना (अर्थ)ज़रूरत की क्रियायें ।
** पेड़/पौधे, जल/वायु प्रदूषण

पंडित लोग प्राय: अज्ञात/अंदर के विषयों की चर्चा करते हैं जैसे आत्मादि,
जबकि साधुजन ज्ञात/बाह्य क्रियाओं की ।
क्योंकि पंडित प्राय: आचरणों से दूर रहते हैं और साधुजन प्राथमिकता देते हैं ।

चिंतन

पूजादि करके क्रोधादि करने पर दोष ज्यादा लगता है,
जैसे…
हाथी पर धूल तो लगती/गिरती रहती है पर वह नहाने के बाद यदि धूल में खेलेगा तो धूल बहुत चिपकेगी तथा देर तक चिपकी रहेगी ।

भक्त… प्रभु ! बस मेरी एक करोड़ रुपए की लौटरी निकलवा दो ।
प्रभु… टिकट का नम्बर बता !
भक्त…टिकट तो खरीदी नहीं है ।
प्रभु…😯

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

एक निवाला पेट तक पहुंचाने का…नियति  ने क्या ख़़ूब इंतजाम किया है…
अगर गर्म है, तो हाथ बता देते हैं ;
सख़्त है, तो दांत ;
कड़वा या तीखा है, तो ज़ुबान ;
बासी है, तो नाक बता देती है ;

बस मेहनत का है या बेईमानी का !…
इसका फैसला आपको करना है…!!

(मंजू)

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