हृदयांगन में सुगंधित गुण रूपी फूल खिलने पर, आँगन सुंदरता/ सुगंधी से तो भर ही जाता है तथा सत्संगी रूपी तितलियाँ भी मंडराने लगती हैं, जिससे वातारण और-और सुंदर बन जाता है।

चिंतन

भेंट उनको जो लेते हैं जैसे राजा, मेहमान।
दान समर्पित उनको जो लेते नहीं हैं जैसे साधु,
दान जैसे आहार-दान साधु को।
समर्पण जैसे नारियल साधु को।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

“If you think you are too small to make a difference, you haven’t spent the night with a mosquito.”

(J. L. Jain)

Small size does not come in the way of doing good either.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

(कमलकांत)

विषकन्याओं के प्रभाव से बचाने के लिये राजाओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष दिया जाता था, चाणक्य भी चंद्रगुप्त को विष दिलवाते थे।
हमको भी बड़े-बड़े दुखों को सहने के लिये छोटे-छोटे दुखों को सहने का अभ्यास करना चाहिये।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

मुनिश्री के अभिप्राय को वैक्सीनेशन के उदाहरण से भी अच्छी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं।

डाॅ.सौरभ – विदिशा/ कमल कांत

प्राय: हम उन चीजों का विवरण बहुत विस्तार में देते हैं जिनमें सामने वाले को कोई रुचि नहीं होती/ वह जानना भी नहीं चाहता जैसे मेरे रिश्ते में कोई घटना हो तो सुनने वाले को Something-Something कह, बात को Cut Short करके अपनी और दूसरों की Energy बचा क्यों नहीं सकते !

चिंतन

वचन 2 प्रकार –
1. शिष्ट प्रयोग
2. दुष्ट प्रयोग
कुल 12 प्रकार के, इनमें 11 दुष्ट प्रयोग, जैसे अव्याख्यान (टोकना), कलह।
शिष्ट प्रयोग – सम्यग्दर्शन वाक्।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड: गाथा – 366)

तो समझदारी मौन रहने में ही होगी ना।

चिंतन

संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ?
दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ।
दोनों ही क्षेत्र में नकल/ प्रतिस्पर्धा नहीं, हाँ ! किसी को आदर्श बनाने में बुराई नहीं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

गुफा ने सूर्य को दुखड़ा रोया… हर जगह/ हर समय अंधकार ही अंधकार क्यों है ?
सूर्य देखने आया पर गुफा का हर कोना/ हर समय प्रकाशित दिख रहा था।
हम अपने-अपने दुःख मन में संजोये रहते हैं पर कुछ लोग अपने स्वर्ग अपने कंधों पर लेकर चलते हैं, जहाँ-जहाँ भी वे जाते हैं स्वर्ग बन जाता है।

(डॉ.सुधीर- सूरत)

(Some people bring Happiness wherever they go,
Others whenever they go)

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