धर्म……….क्रियात्मक (मुख्यता से),
अध्यात्म… भावात्मक।
लेकिन धर्म की क्रियाओं को भावों के साथ करेंगे तभी भावात्मक अध्यात्म जीवन में आयेगा।

चिंतन

शरीर ….
कर्म शिल्पकार की रचना है।
मिट्टी की इमारत कब ढल जाए पता नहीं, फिर गुमान क्यों ?
ये चंद साँसों के पिल्लर पर खड़ा है।
जो न होती इसके ऊपर चाम की चादर पड़ी,
कुत्ते नौंचते रहते इसे हर घड़ी।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (03 अगस्त 2024)

बलिहारी गुरु बाजरा,
तेरी लम्बी पान*।
घोड़े को तो पर लगे,
बूढ़े हुए जवान।

* हाथ/ शक्ति

आचार्य श्री विद्यासागर जी

(मोटा अनाज खाने की प्रेरणा)

जहाँ दिट्ठो वहाँ पिट्ठो, यही मोक्ष को चिट्ठो।
जहाँ दृष्टि, वहाँ पीठ कर लो।
आज तो हम एक कदम मोक्ष की ओर बढ़ा रहे हैं, दो कदम संसार की ओर।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (30 जुलाई 2024)

एक बुजुर्ग को गाली देने की आदत थी। इसी अवगुण से वे जाने जाते थे।
उनके बच्चों को चिंता हुई।
पिता की बदनामी को मिटाने का उन्होंने तरीका यह निकाला… वे पिता की Side में डंडा लेकर बैठ जाते और सबको डंडा मारते।
समाज कहने लगी… इन लड़कों से तो पिता ही अच्छे हैं।

ब्र.डॉ.नीलेश भैया

(दर्द मिटाने का यह भी एक तरीका है… बड़ा दर्द पैदा कर दो)

संसार में सबसे ज्यादा चर्चा किसकी सुनने का मन होता है?
स्वयं की।
तो उस शख्स से मिलने का मन नहीं करता ?
कभी उससे भी मिला करें (यदि दूसरों से फुरसत मिले तब न !)

(अनुपम चौधरी)

अमरता….
दैहिक… दीर्घ आयु, अमृत चखने से देव
जैविक… पुत्र, प्रपोत्र से
नामिक… जिनका नाम चलता रहता है
वैचारिक.. जैसे गांधीवाद, बहुत मूल्यवान
सात्विक.. सात्विकता में प्रसिद्धि

ब्र.डॉ.नीलेश भैया

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