मन का काम करने से मन के गुलाम बन जाते हैं,
मन से काम लेने से मालिक ।

विकलेंद्रिय (2 से 4 इंद्रिय) वाले (बिना कान के कीड़े) बोलते रहते हैं, सुनते नहीं हैं ।
यदि हम भी बोलते अधिक हैं, सुनते कम या नहीं* हैं तो हममें और कीड़ों में क्या फर्क रहा !

आचार्य श्री विद्यासागर जी

*अच्छी/हितकारी/गुरू/भगवान की वाणी

वीतराग/अहिंसा धर्म में पहले उपदेश साधु बनने का/ छोड़ने का होता है, क्योंकि इसमें निवृत्ति की प्रमुखता है ।
अन्य मत प्रवृत्तिआत्मक होते हैं ।

भगवान महावीर ने खुद के दर्शन करने को नहीं कहा, पूजादि करने को भी बाद में कहा; पहले खानपान की शुद्धता पर जोर दिया; जो जिंदा रखता है तथा ग़लत भोजन बीमारियाँ पैदा करता है । भोजन में भी पहले सामिष छोड़ने को कहा ।
धर्म पहले सावधान करता है, कर्म/ कोरोना वही सावधानियां बाद में करता/ करने को मजबूर कर देता है ।

मुनि श्री सुधा सागर जी

चोट लगे (स्थान) में चोट बहुत पीड़ा देती है ।
बुरे समय में किसी से उलझें नहीं, सावधानी बहुत रखें ।
(कोरोना भी तो हम सबके बुरे समय का परिणाम है, इससे उलझें/ डरें नहीं; बस सावधानी बहुत रखें)

मुनि श्री सुधासागर जी

जीव रक्षा क्यों, आत्मा तो कभी मरती नहीं ?

ताकि मनुष्यादि अपना आत्मकल्याण करके दु:खों से मुक्ति पा सकें ।
पर कीड़े-मकोड़े/पेड़-पौधे तो आत्मा को जानते भी नहीं, तो कल्याण कैसे करेंगे ?
असहाय की रक्षा करके, दया के भावों से अपना आत्मकल्याण कर सकते हैं न !

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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