मन का काम करने से मन के गुलाम बन जाते हैं,
मन से काम लेने से मालिक ।
विधि व निधि* होते हुए भी यदि सन्निधि** नहीं तो सब बेकार ।
* विवेक/बुद्धि
** धर्म से जुड़ना
आचार्य श्री विद्यासागर जी
समस्या को तपस्या बना लो, फ़िर वह समस्या नहीं रह जाती ।
कैसे बनायें ?
समस्या को स्वीकार करके ।
Be willing to surrender what you are,
for what you could become in your life.
जीवन को “आह” से “वाह” में परिवर्तित करने के लिये “चाह” हटाना होगा ।
तब जीवन को “राह” मिल जायेगी ।
पहले अपने मन पर नियंत्रण करें,
फ़िर अपने माता-पिता/गुरु की नज़र में महान बनें ।
बस! फ़िर किसी और की चिंता मत करना, कोई महान माने या ना माने ।
विकलेंद्रिय (2 से 4 इंद्रिय) वाले (बिना कान के कीड़े) बोलते रहते हैं, सुनते नहीं हैं ।
यदि हम भी बोलते अधिक हैं, सुनते कम या नहीं* हैं तो हममें और कीड़ों में क्या फर्क रहा !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
*अच्छी/हितकारी/गुरू/भगवान की वाणी
जीवन में वह सब सरल जिसे स्वीकार लिया और वह सब कठिन जिसे नकार दिया ।
फिर चाहे वह धर्म का हो या अधर्म का ।
वीतराग/अहिंसा धर्म में पहले उपदेश साधु बनने का/ छोड़ने का होता है, क्योंकि इसमें निवृत्ति की प्रमुखता है ।
अन्य मत प्रवृत्तिआत्मक होते हैं ।
सत्य दुनिया को बदल सकता है,
पर सारी दुनिया मिलकर भी सत्य को नहीं बदल सकती ।
भगवान महावीर ने खुद के दर्शन करने को नहीं कहा, पूजादि करने को भी बाद में कहा; पहले खानपान की शुद्धता पर जोर दिया; जो जिंदा रखता है तथा ग़लत भोजन बीमारियाँ पैदा करता है । भोजन में भी पहले सामिष छोड़ने को कहा ।
धर्म पहले सावधान करता है, कर्म/ कोरोना वही सावधानियां बाद में करता/ करने को मजबूर कर देता है ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
चोट लगे (स्थान) में चोट बहुत पीड़ा देती है ।
बुरे समय में किसी से उलझें नहीं, सावधानी बहुत रखें ।
(कोरोना भी तो हम सबके बुरे समय का परिणाम है, इससे उलझें/ डरें नहीं; बस सावधानी बहुत रखें)
मुनि श्री सुधासागर जी
Tension is who you think you should be.
Relaxation is who you are.
जीव रक्षा क्यों, आत्मा तो कभी मरती नहीं ?
ताकि मनुष्यादि अपना आत्मकल्याण करके दु:खों से मुक्ति पा सकें ।
पर कीड़े-मकोड़े/पेड़-पौधे तो आत्मा को जानते भी नहीं, तो कल्याण कैसे करेंगे ?
असहाय की रक्षा करके, दया के भावों से अपना आत्मकल्याण कर सकते हैं न !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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