कोरोना जैसी महामारी में distancing, physical होनी चाहिए,
socially तो distances कम होने/ मिटने चाहिए,
तभी हम मिलकर उससे महायुध्द जीत सकेंगे ।
कामना- – मन की इच्छाओं को प्रकट करना,
गुरु/भगवान से अपने/अपनों के लिये कुछ मांगना ।
प्रार्थना- – इष्ट के सामने अपनी लघुता को प्रकट करते हुये, शांत रहने/संकट से जूझने की सामर्थ पाने के उदगारों/गुणानुवादों की अभिव्यक्ति ।
शरीरों के स्वभाव अलग अलग –
मिट्टी व जल स्वभाव वाले एकमेव,
धातु लकड़ी को -काटेगी, अग्नि लकड़ी को -जलायेगी, विपरीत स्वभाव वाले ।
इसलिये किसी को सोने की माला लाभदायक, दूसरे को नुकसानदायक ।
मुनि श्री सुधासागर जी
धरती पर हल चलाने से उसको दु:ख तो होता है,
पर धर्म रूपी फसल उगाने को धरती उर्वरा हो जाती है,
तथा परोपकार के संतोष रूपी सुख में दुःख को भूल जाती है ।
चिंतन
पुण्य अनूकूल दिशा में बहने वाली हवा है,
जो हमको गंतव्य पर जल्दी पहुँचा देने में सहायक होती है ।
गधे के ऊपर कितनी भी स्वादिष्ट सामग्री लाद दो,
पर उसके मुँह में स्वाद नहीं आयेगा ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
भगवान महावीर के समय एक कसाई रोज़ भैंसे मारता था । श्रेणिक राजा ने उसे जेल में डाल दिया । पर जेल में भी वह अपने शरीर से मैल की बत्ती बना-बना कर उन्हें नाख़ून से काटता था, क्या उसे भाव हिंसा का दोष नहीं लगेगा ?
श्री राम वनवास में 14 वर्ष तक धर्म कैसे करते थे, जंगल में मंदिर/ पूजा की सामिग्री तो थी नहीं !
जब कसाई को भावों से पाप लगा तो श्री राम को/ आज की परिस्थिति में हमको भावों से पुण्य नहीं मिलेगा !!
मुनि श्री सुधासागर जी
नेता नीति बना सकता है,
पर उसका Implementation जनता की नीयत तय करेगी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(धर्म के क्षेत्र में भगवान नीति बनाते हैं, गुरु बताते हैं, मैं 75 वर्ष से सुन रहा हूँ पर implementation की 75% नीयत भी नहीं बन पा रही)
जो फर्ज़ नहीं निभाते, वे फर्ज़ी ।
फर्ज़ निभाने के लिय, कर्ज़ का स्मरण बनाये रखना होगा ।
कोरोना जैसी महामारी से भी सीखो…सब संबंध धोखे के हैं,
हर व्यक्ति को छूने से भी डरो/ सावधानी बरतो चाहे वह अपना ही बच्चा क्यों न हो/ अपना ही शरीर क्यों न हो !
मुनि श्री सुधा सागर जी
जो सेवा की जाती है, वह सकाम सेवा है ;
जो सेवा होती है, वह निष्काम सेवा है
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
*विपत्ति के समय निष्काम सेवा ही श्रेष्ठ सेवा है*
3 प्रकार की –
1. श्वान जैसी – जहाँ जहाँ मालिक जाता है, उसके पीछे पीछे चले ।
2. बिल्ली जैसी – कभी साथ, कभी नहीं ।
3. चूहे जैसी – अपना बिल बना लिया, मालिक आये या जाये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
आप शिष्यों को अपने से इतनी दूर भेज देते हैं, उनसे संम्प्रेषण कैसे होता है ?
बिजली का खंभा कितनी भी दूर हो पर Connection* हो तो घर प्रकाशित होगा ना !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
*गुरु आज्ञा/शिष्य की श्रद्धा
Fame is the praise bestowed on a good man
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