क्षमा आधार है (भूमि है),
अहंकार दीवार ।
गति (तीव्र), दुर्गति का कारण बनती जा रही है ।
आप अपनी अंतिम यात्रा की तय्यारी कर रहे हैं !
आप लोग मेरे शरीर की अंतिम यात्रा की ओर देख रहे हैं;
मैं संसार की अंतिम यात्रा की ओर, जो बहुत महत्वपूर्ण है ।
सो मुझे रागद्वेष कुछ नहीं दिख रहा है, सिर्फ सिध्द भगवान दिख रहे हैं ।
कर्म की अग्नि मुझे जला रही है, मैं ज्ञान और तप से कर्मों को ।
तुम लोग डूबते सूरज को देख कर रो रहे हो, मैं उगते सूरज को देख रहा हूँ ।
यहाँ के कामों को विराम, आगे के कामों की तय्यारी ।
पुण्य के उदय में गाफ़िल न हो जाउँ, सावधान हूँ ।
ॐ नमः सिध्देभ्यः
मुनि श्री चिन्मय सागर जी – 27.9.19
सत्य में व्यस्त होकर, संसार से विरक्त होना ही सन्यास है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ज्यादातर चीजें समीप जाने पर बगैर मांगे मिल जाती हैं…
जैसे *बर्फ* के पास *शीतलता* ,
*अग्नि* के पास *गरमाहट*
और
*गुलाब* के पास *सुगंध* ,
तो भगवान् से मांगने के बजाये, निकटता बनाओ;
तब सब कुछ अपने आप मिलना शुरू हो जायेगा ।
🌷🌹आपका दिन मंगलमय हो
(सुरेश)
If you don’t believe in yourself,
then how can you expect others to believe you ?
चित्त अचेतन,
मन चेतन ।
हालाँकि धर्म में इनको अलग अलग नहीं माना है ।
(कृपया comments भी देखें)
माला में धागा, मोती से ज्यादा महत्व रखता है, पर उसमें गठानें नहीं होना चाहिये वरना मोतीयों में बिंध नहीं पायेगा/ उनको बांधकर नहीं रख पायेगा ।
बिना ग्रंथियों तथा मज़बूत धागे में पिरोयी माला को पहनने को तो सब लालायित रहते हैं, पर खुद ग्रंथी रहित और मज़बूत बनना नहीं चाहते ।
समर्पण यानि इच्छाओं का अर्पण ।
समर्पण से नदी सागर बन जाती है ।
संसार में समर्पण उसे करें जो विश्वासघात ना करे, वह भी मर्यादा (रिश्तों की) के अंदर ही ;
परमार्थ में, जो मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ाये ।
Kind Words are short and soft,
but their echoes are endless
ज़रूर कोई तो लिखता होगा…
कागज़ और पत्थर का भी नसीब…
वरना ये मुमकिन नहीं कि…
कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाये…
और…
कोई कागज रद्दी और कोई गीता बन जाये…!
🌷🌹(सुरेश)🌹🌷
मोह रूपी असावधानी से/अपनी ही सांसों से, अपना ही दीपक बुझ जाता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
धर्म आत्मा का स्वभाव है,
कर्म किये का फल ।
दोनों को अलग अलग रखें ।
धर्म तो मंगलाचरण हैं – कार्य करने से पहले, कार्य के दौरान और अंत में (चाहे परिणाम अनुकूल हो या प्रतिकूल) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
अक्सर हार जाता हूँ…
उन लोगों से……
जिनके,
दिल में भी दिमाग होता है ।
🌹(अरविंद)🌹
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