पिंजरा तो खुल गया परंतु पंख ही न खुले तो क्या होगा ?
दीपक तो जल गया परंतु आँख ही न खुले तो क्या होगा ?

धर्म-शास्त्र के उपदेश तो अनेक सुन लिये, परंतु भीतर की गाँठें न खुले तो क्या होगा ??

सोच मनवा सोच !

(मंजू)

■ संसार के सब जीवों (मनुष्य, पशु, पेड़ पौधे) को unconditional क्षमा,
सब से unconditional क्षमा ।

■ “श्री” भगवान के नाम से पहले 1008 बार,
गुरु के 108 बार,
शत्रु के 4,
मित्र 3,
सेवक 2,
पत्नी/पुत्र 1

पं.जगमोहन लाल शास्त्री (मुनि श्री प्रमाण सागर जी)

ब्रम्हचर्य
• पाँचों इंद्रियों के संयम को कहते हैं;
• स्त्रीयों के सम्मान में है;
• असुंदर/कुरूप के प्रति घ्रणा न होना ब्रम्हचर्य है ।

● ब्रम्हचर्य से क्षमता/शक्ति/आत्मविश्वास बढ़ता है ।
• राजा भरत चक्रवर्ती के भाग्य में हजारों रानियां थीं पर उन्हें हजारों की भूख नहीं थी ।
• हम तो हर वस्तु मनोरंजन के लिए ही लेते हैं चाहे वह भोजन हो, कपड़े या पति-पत्नी ही क्यों न हो ।
• अमीर न सही, अमीर बनने का विचार तो करते हो न !
तो ब्रम्हचर्य का क्यों नहीं ?
• जो विकारों को पूर्णता से नियंत्रण कर सकते हैं वे मुनि/साधु बनें,
जो नहीं रख सकते उन्हें एक पत्नि/पति व्रत तो लेना ही चाहिए ।

मुनि श्री अविचल सागर जी

• आकिंचन्य = किंचित भी मेरा नहीं ।
• पूर्ण त्याग के बाद जो बचा, वह आकिंचन्य ।
• बाज़ार में एक से बढ़कर एक दुकान पर आकिंचन्यी दूर से दूर ।
• आकाश और पृथ्वी पर सब क्रियायें होती रहती हैं पर वे अप्रभावित,
गहरी/शांत नदी और अहिमेंद्रों जैसे ।
• आकिंचन्य से आत्मा कंचन बन जाती है ।

आचार्य श्री विद्या सागर जी

• त्याग में प्रत्युपकार आया तो वह तामसिक होगया,
प्रदर्शन के साथ राजसिक,
कर्तव्य मानकर छोड़ा जैसे सफाई करके हल्कापन महसूस करते हैं, तो सात्विक ।
• पहले अचेतन का त्याग करें फिर चेतन का ।

मुनि श्री क्षमा सागर जी

■ इच्छा निरोधः तपाः

आचार्य श्री विद्या सागर जी

■ आचार्य श्री विद्या सागर जी ने उपवास शुरू किये । मुनिजन आहार के लिए रोज कमंडल ले जाते पर आचार्य श्री एक-एक करके उपवास बढ़ाते चले जा रहे थे । 10वें दिन मुनिजन कमंडल नहीं ले गये, यह सोचकर कि अब तो आचार्य श्री 10 उपवास पूरे करेंगे ही । पर आचार्य श्री आहार के लिए उठ गये ।
आचार्य श्री–उपवास record बनाने के लिए नहीं किये जाते हैं बल्कि साधना को निखारने के लिए किये जाते हैं । मेरे पैरों में कंपन शुरू हो गया था, और उपवास मेरी साधना में बाधक बन जाता ।

मुनि श्री सुधा सागर जी

■ तप = “पर” वस्तुओं को अपना न मानना ।
• कर्म और विकारों को क्षय करने के लिए तप है ।
• तप 2 प्रकार के…
1) बाह्य – अनशन, ऊनोदर(भूख से कम खाना), वृत्ति परिसंख्यान(नियम मिलने पर ही खाना), रसपरित्याग, विवित्तशय्यासन(एकांत में सोना), कायक्लेश(शरीर को कष्ट में रखकर तपना)
2) अंतरंग – प्रायश्चित, विनय, वय्यावृत्ति(गुरुजनों की सेवा), स्वाध्याय,व्युत्सर्ग(ममत्व छोड़ना), ध्यान

मुनि श्री अविचल सागर जी

संयम =
• नज़र पर नज़र रखना;
• वापस लाना जैसे बैल के ग़लत रास्ते जाने पर किसान लगाम खींचकर वापस लाता है;
• व्रतादि कार है, विपरीत परिस्थितियों में सही से चलाना संयम/अहिंसा
• संयम कैसे आये ?
1) खुद को बोलो……” ये ठीक नहीं है ”
2) मन/बुद्धि को बोलो…” चुप रहो ”

मुनि श्री अविचल सागर जी

सत्य वह जो स्वयं को तथा औरों को सुख पहुंचाये और पवित्र करे ।
• यदि आप अपने को शरीर या आत्मा में से कोई भी एक मानते हैं, तो यह असत्य है, दोनों मानना सत्य ।
• ज़ुबाँ मौकापरस्त होती है, बुद्धि सत्य सोचती है;
पर हमने लगातार असत्य बोल-बोल कर बुद्धि को भी असत्य सोचना सिखा दिया है ।
• हम जीवन में मनोरंजन बनाये रखने के लिए, सत्य बोलना/ सोचना भी नहीं चाहते ।
• सत्यम् शिवं सुंदरम्

मुनि श्री अविचल सागर जी

शौच = पवित्रता/ लोभ न करना
लोभ दो प्रकार का…
1) नैतिक – कुल/ समाज/ राष्ट्र/ धर्म के नियमानुसार;
गृहस्थों के लिए निषेध नहीं ।
2) अनैतिक – नियम विरुद्ध; गृहस्थों के लिए निषेध ।
साधु के दोनों का निषेध ।

मुनि श्री अविचल सागर जी

आर्जव = मायाचारी का उल्टा/ सरलता
■ सरलता देखनी/सीखनी है तो छोटे बच्चों से सीखें ।
• सरल होने के लिए, लोहे की छड़ की तरह तपना होगा/ घनों की चोटें सहनी होंगी ।

आचार्य श्री विद्या सागर जी

■ भगवान का उपदेश…”प्रतिपक्ष भावना बलवती”…
मन की negative picture का positive दिखाना…
क्रोध के लिये क्षमा, घ्रणा के लिये प्रेम, लालच के लिये दान आदि ।
•दुर्योधन मंत्र पढ़ कर तीर चलाता था, वह साँप बन जाता था ।
जबाव में अर्जुन भी मंत्र पढ़ कर तीर चलाता था, जो गरुड़ बन जाता था और अर्जुन बच जाता था । यदि उस समय अर्जुन गरुड़ वाले तीर की जगह पानी बरसाने वाला तीर छोड़ता या तीर छोड़ने में देरी कर देता तो क्या वह बच जाता ?
• हर बीमारी की एक निश्चित दवा लेनी होती है और समय पर अन्यथा बीमारी असाध्य हो जाती है ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

मान का न होना ।
मद = मान का नशा ।
मद 8 चीजों का—
जाति, कुल, ज्ञान, बल, रूप, तप, पूजा, ऋद्धि ।
मद के Lamination लगने के बाद सुधार बंद हो जाता है ।
मद से बचाव—
1) पश्चाताप
2) चिंतन
3) आँखों में प्यार/शांति
4) वाणी और स्पर्श में कोमलता
5) भगवान से commitment और प्रार्थना ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

■ क्षमा से बैर नहीं रखना ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

■■ क्षमा कैसे करें ?
बस क्षमा करके, क्षमा करें / बैर छोड़ दें, उनसे भी जिनको पता ही नहीं कि आप उनसे बैर करते हैं ।
2) दुश्मनी निभाने के लिए भगवान को छोड़ने को तैयार हो !
(उनकी क्षमा करने की आज्ञा की अवहेलना करके)
आचार्य मानतुंग के भक्तामर में शक्ति, अपमानित करने वालों को क्षमा करने से ही आयी थी ।
3) यदि क्षमा करने की शक्ति नहीं है तो भगवान से प्रार्थना करो ।
4) यदि संसार में मेरा कोई नहीं, तो बैरी मेरा कैसे हो सकता है !

मुनि श्री अविचलसागर जी

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