विज्ञान मानववादी,
धर्म मानवतावादी होता है ।
सत्य सूली पर चढ़कर (मृत्यु के बाद) भी जीवित रहता है,
असत्य सिंहासन पर बैठकर भी अमर नहीं होता ।
प्रेम समरसता से साथ रहना,
मोह जिसके बिना न रहा जाय ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Nothing can dim the light which shines from within.
सुन लेने से कितने सारे सवाल सुलझ जाते हैं,
सुना देने से हम फिर से वहीं उलझ जाते हैं !
(सुरेश)
सबसे घटिया वह मान – जो दूसरों का अपमान करे ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ज्ञान से हित अहित की जानकारी होती है,
विवेक से हित अहित में फर्क कर पाते हैं,
श्रद्धा विवेक पैदा करती है ।
(गिरराज भाई)
धन से धर्म कमाना (करना) अच्छा,
धर्म से धन कमाना बुरा ।
अत: धन बुरा नहीं, यदि धन से धर्म कमाया जाय तो ।
मुनि श्री सुधासागर जी
सृष्टि* कितनी भी परिवर्तित हो जाए फिर भी हम पूर्ण सुखी नहीं हो सकते,
परंतु
दृष्टि थोड़ी सी भी परिवर्तित हो जाए तो हम पूर्ण सुखी हो सकते हैं ।
“जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि”
* आसपास का वातावरण
🙏(श्रीमति शर्मा)
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसकी जितनी ज़रूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे;
बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अकसर,
क्योंकि मुझे अपनी
औकात अच्छी लगती है;
मैंने समंदर से
सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और
अपनी मौज़ में रहना;
सोचा था घर बना कर
बैठुंगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने
मुसाफ़िर बना डाला मुझे;
कितने दूर निकल गए
रिश्तों को निभाते निभाते,
खुद को खो दिया हम ने
अपनों को पाते पाते;
खुश हूँ और सबको
खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी
सब की परवाह करता हूँ ।
(पारुल मेहता)
आत्मा भी अंदर है,
परमात्मा भी अंदर है ।
तो आत्मा के परमात्मा से मिलने का रास्ता भी तो अंदर ही होगा न !
अतः “खुद”को”खुद” के अंदर ही बोध करो…
(सुरेश)
People really like to be measured
when
measurement is fair and Open.
आज “ज़िस्म” में जान है तो देखते नहीं हैं लोग,
जब “रूह” निकल जाएगी तो कफ़न हटा हटा कर देखेंगे ।
💐💐 सुरेश 🙏🙏
इंसान के ग़ुरूर की औक़ात बस इतनी सी है…
ना पहली बार ख़ुद नहा सकता है, ना आख़िरी बार ।
(श्रीमति शर्मा)
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