विज्ञान मानववादी,
धर्म मानवतावादी होता है ।

सृष्टि* कितनी भी परिवर्तित हो जाए फिर भी हम पूर्ण सुखी नहीं हो सकते,
परंतु
दृष्टि थोड़ी सी भी परिवर्तित हो जाए तो हम पूर्ण सुखी हो सकते हैं ।
“जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि”

* आसपास का वातावरण

🙏(श्रीमति शर्मा)

अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसकी जितनी ज़रूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे;

बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अकसर,
क्योंकि मुझे अपनी
औकात अच्छी लगती है;

मैंने समंदर से
सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और
अपनी मौज़ में रहना;

सोचा था घर बना कर
बैठुंगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने
मुसाफ़िर बना डाला मुझे;

कितने दूर निकल गए
रिश्तों को निभाते निभाते,
खुद को खो दिया हम ने
अपनों को पाते पाते;

खुश हूँ और सबको
खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी
सब की परवाह करता हूँ ।

(पारुल मेहता)

आत्मा भी अंदर है,
परमात्मा भी अंदर है ।
तो आत्मा के परमात्मा से मिलने का रास्ता भी तो अंदर ही होगा न !

अतः “खुद”को”खुद” के अंदर ही बोध करो…

(सुरेश)

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