पुण्य का फल मीठा लगता है/होता है,
पर उसकी गुठली पाप रूप होती है ।

धर्म को Washing Powder ना मानें कि पहले प्रयोग करें फिर विश्वास करें,
बल्कि बीमा जैसा मानना – “जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी”

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

एक जुट हों,
एक से जुड़ें नहीं,
बेजोड़* बनें ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

* अपूर्व/अखंड/बिना जोड़/मतभेद रहित

ज़रा सी बात से मतलब बदल जाते हैं…

उंगली उठे तो बेइज्ज़ती👉🏼
अंगूठा उठे तो तारीफ़ 👍🏻
और
अंगूठे से उंगली मिले तो लाज़बाव👌🏽

यही तो है ज़िंदगी का हिसाब ।

(विश्वकर्मा)

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