“सुख रत्ती भर भी कम न हो, दु:ख पल भर भी टिके नहीं।” ऐसी चाहना ही सबसे बड़ा दु:ख है।
साधु दु:ख स्वीकारते हैं इसलिए सुखी रहते हैं। गाली ना स्वीकारने पर उन्हें सुख होता है क्योंकि कर्म कटे। दु:ख वाले कर्मों का साथ देना ही सुख है।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (17 जून)

गणित में सवाल हल करते समय, “माना कि” से सवाल हल हो जाते हैं।
पर जीवन में जो तुम्हारा है नहीं, उसे अपना मान-मान कर जीवन को सवाल बना दिया है/ बेहाल कर दिया है।

चिंतन

चार प्रकार के फूल होते हैं…
1) सुंदर और ख़ुशबूदार
2) सुंदर पर ख़ूशबू नहीं
3) सुंदर तो नहीं पर ख़ुशबूदार
4) सुंदर भी नहीं और ख़ूशबू भी नहीं

प्रश्न यह है कि हम किस तरह के फूल बनना चाहते हैं !

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (3 नवम्बर)

राग —> न रहे* तो रहा न जाए।
द्वेष —> रहे** तो रहा न जाए।
सारे युद्ध राग की वजह से ही हुए हैं। रावण को सीता से राग था इसलिए राम से द्वेष हुआ और युद्ध हुआ।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (27 नवम्बर)

* प्रियजन
** दुश्मन

भगवान और हमारे रंगों में फ़र्क नहीं –> वे भी काले, हम भी।
फ़र्क सिर्फ़ इतना है –> वे ऊपर से काले हैं (पार्श्वनाथ आदि), अंदर से सफ़ेद।
हम ऊपर से सफ़ेद, अंदर से काले।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

एक व्यक्ति 30 तारीख को बहुत रो रहा था।
कारण ?
आज के ही दिन 10 साल पहले मेरे ताऊ जी मरे थे, मुझे एक करोड़ दे कर गए थे। पिछली साल आज ही के दिन पिताजी 2 करोड़ छोड़ कर गए।
क्या आज भी कोई मर गया ?
नहीं, आज कोई नहीं मरा इसीलिए तो रो रहा हूँ।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (24 नवम्बर)

देखते-देखते ही वर्ष का आरी महीना दिसंबर आ गया। ऐसे ही देखते-देखते अपने जीवन का अंतिम क्षण आ जाएगा।
जैसे साल भर का लेखा-जोखा आखिरी महीने में देखते हैं ऐसे ही जीवन का लेखा-जोखा(पाप/पुण्य, शुभ/अशुभ कर्म) तैयार किया क्या ?

चिंतन

मां अपने नालायक बच्चे को ताने मारती है… देख ! पड़ोसी का बच्चा कितना लायक है।
पर जब कुछ देने की बात आती है तो सब कुछ अपने नालायक बच्चे के लिए, लायक पड़ोसी के बच्चे को कुछ भी नहीं।
यह मोह भाव आता कहाँ से है, जो अनंतों को दुखी कर चुका है?
अपने दुर्विचारों से।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(25 नवम्बर)

Antique चीज़ें बहुमूल्य होती हैं।
हमारे शास्त्र तो हजारों वर्ष पुराने हैं। इनका मूल्य तो आँका ही नहीं जा सकता।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (22 नवंबर)

दो प्रकार के लोग

  • बंधनीय –> जो बंध को पा रहे हैं जैसे कैदी, बलात सीमा में रखते हैं ताकि अमर्यादित न होने पायें।
  • वंदनीय –> वेद* से संबंधित। जो सब आत्माओं में भगवान-आत्मा को देखते हैं।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

* ज्ञान

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