शराब पीकर,जुआ खेल कर मरने की स्वतन्त्रता है,
भ्रष्टाचार खुलेआम स्वतन्त्र विचरण कर रहा है,
व्यभिचार को भी मौन स्वीकृति प्राप्त है।

पर अनादिकाल से चली आ रही धार्मिक क्रिया “समाधि-मरण” को स्वतन्त्रता
क्यों नहीं ?

ज़िन्दगी में खुद को कभी किसी इंसान का आदी मत बनाना…

क्यूंकि, इंसान बहुत खुदगर्ज़ है…

जब आपको पसंद करता है , आपकी बुराई भूल जाता है ;
और जब आपसे नफ़रत करता है , तो आपकी अच्छाई भूल जाता है…

(ड़ा. अमित)

२ प्रकार के-
१) कृष्ण जैसे, आपके लिये लड़ें नहीं, पर सही मार्ग-दर्शन दें
२) कर्ण जैसे, आपके गलत होने पर भी, आपकी ओर से लड़ें

आप कैसे मित्र चाहते हैं ?
और कैसे मित्र बनना चाहते हैं ?

(आशीष मणी-अमेरिका)

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