इच्छाओं को इच्छाशक्ति में परिवर्तित करना होगा ।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

एक व्यक्ति ने अपने दुश्मन की तीव्र आलोचना एक पत्रिका में बिना अपना नाम दिये छपवा दी।
कुछ दिनों बाद आलोचक पर भारी आर्थिक संकट आ गया।
दूसरे व्यक्ति ने उसकी आर्थिक सहायता की पर अपना नाम नहीं बताया ।
पहले व्यक्ति के नाम न बताने का कारण पूछने पर उसका जबाब था-
तुमने भी तो आलोचना में अपना नाम नहीं दिया था न !

सुख की परिभाषा –
डाक्टर/ बीमार – शरीर की निरोगता
ज्योतिषी – घटनाओं की अनुकूलता
धर्म – परोपकार/ त्याग/तप।

तो सच्चा सुख क्या ?

जो –
1) स्थायी
2) अंत सुखमय
3) लगातार बढ़ने वाला
4) दूसरों को भी सुख देने वाला
हो।

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