कुआँ भी अपनी छाया दूसरों पर नहीं पड़ने देता है ।

(श्री रत्न सुंदर सूरीश्वर जी)

अपने दुर्गुणों का साया कम से कम अपने बच्चों पर तो मत पड़ने देना ।

सुख की परिभाषा –
डाक्टर/ बीमार – शरीर की निरोगता
ज्योतिषी – घटनाओं की अनुकूलता
धर्म – परोपकार/ त्याग/तप।

तो सच्चा सुख क्या ?

जो –
1) स्थायी
2) अंत सुखमय
3) लगातार बढ़ने वाला
4) दूसरों को भी सुख देने वाला
हो।

धर्म का प्रभाव क्यों नहीं हो रहा ?

क्योंकि हम जीवन में धर्म का अभाव महसूस नहीं करते हैं ,
इसलिये धर्म जानने/ समझने के भाव नहीं बनते,
बिना भाव के धर्म का प्रभाव कैसे होगा !

पता कैसे चले कि धर्म का प्रभाव हो रहा है ?
जब धर्म स्वभाव बन जाय ।

चिंतन

संवेदनशील ही सत्संग में जाकर सद्भावनाओं को परिष्कृत करता है ।
उससे आत्मशुद्धि कर, सिद्धि को प्राप्त करता है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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