पानी कीचड़ बनाता है,
पानी ही कीचड़ साफ़ करता है।

मन में विकार आते हैं,
मन से ही विकार दूर होते हैं।

दूसरों को अपने चरणों में झुकाना तो आसान है,
पर क्या तुम अपने चरणों में झुक सकते हो ?
झुकने योग्य मानते हो ?
पैर तभी चरण बनते हैं, जब वे आचरण से धुलकर साफ हो जाते हैं ।

ब्र. नीलेश भैया

कैसे मान लूँ की तू पल पल में शामिल नहीं,
कैसे मान लूँ की तू हर चीज़ में हाज़िर नहीं ।
कैसे मान लूँ की तुझे मेरी परवाह नहीं,
कैसे मान लूँ की तू दूर है पास नहीं ।
देर मैंने ही लगाई पहचानने में ,मेरे ईश्वर !
वरना तूने जो दिया उसका तो कोई हिसाब ही नहीं ।
जैसे जैसे मैं सर को झुकाता चला गया,
वैसे वैसे तू मुझे उठाता चला गया ।

(श्रीमति पारुल- बड़ौदा)

हाथ पैर तो तैरने वाला भी मारता है और जिसे तैरना नहीं आता वो भी ।
फिर दूसरा ड़ूबता क्यों है ?

हाथ पैर सलीके से चलाना नहीं आता ।
सलीका आने के बाद तो हाथ पैर चलाना बंद करके भी वह तैरता रहता है, ड़ूबता नहीं है ।

ब्र. नीलेश भैया

एक गुण को भी यदि उत्कृष्ट बना लिया तो वह छोटे मोटे बहुत से अवगुणों को बहा देगा ।
जैसे नदी में कितने भी मगरमच्छ हों, एक छोटी सी नाव पार लगा देती है, शर्त यह है कि नाव मजबूत हो ।

चिंतन

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