मन कोमल होता है तब ही तो आकार ले लेता है गर्म लोहे की तरह,
झुक जाता है तूफानों में।
घुल जाता है अपनों में या अपने में।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
चाह बुरी नहीं, यह तो नाव की गति के लिये आवश्यक जलप्रवाह है। पर वह प्रवाह बाढ़ नहीं बननी चाहिए वरना जीवन की नाव डूब/ भटक जाएगी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पथ्य* जो पथ में लिया जाता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* रास्ते के लिए भोजन सामाग्री/ अगले जन्म को जाते समय पुण्य कर्म।
भगवान के अनंत गुणों में से उस गुण की चाह करें जो हमारी कमजोरी हो।
आज तक बस गुणगान करते रहे, इसलिए भगवान का कोई गुण हम में आ नहीं पाया।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
विश्वास तब जब बुद्धि के परे हो, फिर चाहे संसार हो या परमार्थ।
विश्वास किया जाता है, दिया नहीं जाता।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
शिक्षा Broad अर्थ में आती है, विद्या भी इसमें समाहित है।
विद्या Specific, जो हमारे जीवन को संवारने के काम आये। इसलिए विद्यार्थी कहा, शिक्षार्थी नहीं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म संकटों को समाप्त नहीं करता, उन्हें सहने की शक्ति देता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अपने पापों को स्वीकार कराता है/ पापों का एहसास कराता है। आगे पापों की पुनरावृत्ति रोकता है।
चिंतन
संयम….स्वाधीन है, सरल है।
असंयम…पराधीन, कठिन।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
‘भाग्य से अधिक और समय से पहले कुछ नहीं मिलता’ – यह सिद्धांत शुरुआत के लिए खतरनाक है/ पुरुषार्थहीन बना देता है।
पुरुषार्थ पूरा करने के बाद, फल का इंतज़ार करते समय इस सिद्धांत को जरूर लगाना, तब यह आपको Tension से मुक्ति दिला देगा।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
जैन दर्शनानुसार – धार्मिक गृहस्थ लोग हिंसा करते नहीं पर जीवनयापन में हिंसा हो जाती है। उसके लिये उन्हें थोड़ा सा दोष लगता है/ नहीं भी लगे।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
हस्तिनापुर पापियों की राजधानी, जो पहले समृद्ध थी, वह आज गाँव है।
इन्द्रप्रस्थ पुण्यात्माओं की राजधानी, आज देश की राजधानी है (दिल्ली)।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
पहली बार धोखा देने वाले को शर्म आनी चाहिए।
दूसरी बार धोखा/ अहित/ नुकसान खाने वाले को शर्म आनी चाहिए क्योंकि आपने अपने आपको संभाला क्यों नहीं !
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आदिनाथ भगवान ने जीवों को जीना सिखाया (कृषि आदि षट्कर्म बता कर)।
महावीर भगवान ने जीवों को मरने से बचाया।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
दर्द दिया नहीं जाता, लिया जाता है।
यदि आप लेना न चाहें तो कोई दे नहीं सकता।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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