In Life, own satisfaction is better than success,
because success is a measure decided by others,
while satisfaction is a measure decided by us.

(Mr. Sanjay)

रावण ने सीता को अपनाने के लिये जब अपना रूप राम का रखा, तब उसने कहा –
“राम कौ रूप बनावत ही, मोहे मात सी लागत नारि पराई”

मुनि श्री सौरभसागर जी

हम ईमानदारी निभा नहीं पाते, सो ईमानदारी की परिभाषा ही अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।
धर्मानुसार चल नहीं पाते, सो धर्म का रूप अपने अपने अनुसार बदल लेते हैं ।

चिंतन

हमारे मुनिराज धन ना होने पर भी निर्धन नहीं हैं, अपितु रत्नत्रयी* रूपी धन से धनी हैं ।

(श्रीमति रिंकी)

॰ सच्चे देव गुरू तथा शास्त्रों के प्रति पक्की श्रद्धा

जितनी उपेक्षा करोगे उतनी सुख,शांति पाओगे ।
इसका अर्थ यह नहीं कि घर वालों से संबंध ही छोड़ दें, उनसे बस मोह कम कर दें/ उनसे मूर्च्छा न रखें ।

क्षु. श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी

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