प्रतिक्रिया वहाँ जरूर दें जहाँ सुलझने की संभावना हो।
जहाँ उलझने की संभावना हो, वहाँ शांत।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म संसार की चकाचौंध से दूर तो नहीं कर सकता।
पर धर्मरूपी (धूप का) चश्मा लगाने से आँखें खराब नहीं होंगी।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
गृहस्थ हर समय धर्मध्यान करे तो गृहस्थी नष्ट (जैसे साधु की)।
धर्मध्यान न करे तो गृहस्थी भ्रष्ट।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
हिंसा/ झूठादि पाप हैं तो अहिंसा/ सत्यादि पुण्य क्यों नहीं ?
अहिंसादि व्रत हैं जो पुण्य से बहुत बड़े/ ऊपर हैं।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(एन.सी.जैन – नोएडा)
इन्द्रिय विजय का तरीका पूछने पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा- “इन्द्रियों का काम मन से मत लेना। इन्द्रियों के संवेग को कम करने के लिये मन का वेग कम करना होगा और मन का वेग, विवेक से कम होगा।”
आलस्य (प्रमाद) भीति तथा प्रीति से ही कम होता है।
भीति – आलसी को बोल दो साँप आ गया, तब आलस्य रहेगा !
प्रीति – बच्चों की देखभाल में !!
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
जिम्मेदारी दुनिया का सबसे बहतरीन टॉनिक है।
एक बार पी लो जिंदगी भर थकने नहीं देती है।
(अरविन्द बड़जात्या)
संस्कार तो ‘Groove’ जैसे होते हैं, उसी में से प्रवाह होता रहता है।
यदि इससे आत्मा पतित/ दुखी हो रही हो तो उसके Side में दूसरा (सही दिशा वाला) ‘Groove’ बना लें, धारा सही दिशा में प्रवाह करने लगेगी।
(श्रीमति अनिता जैन- शिवपुरी )
ऊँचाई पाने के लिये गहराई में जाना जरूरी है,
तो गहराई कैसे पायें ?
बीज अपने आपको मिटा कर ही गहराई (जड़) तथा ऊँचाई प्राप्त करता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आज Car की कीमत बहुत है, कल को गैराज की कीमत कार से ज्यादा हो जायेगी।
पर इन दोनों से ज्यादा कीमती है थी/ है और रहेगी →
1. ‘C’ – change what you can.
2. ‘A’ – Accept which you can’t change.
3. ‘R’ – Remove yourself if you can’t accept.
और यदि अपने को Remove भी नहीं कर सकते तो इतने ऊपर उठ जाओ कि वह समस्या छोटी दिखने लगे, जैसे हवाई जहाज में बैठ कर बड़ा पहाड़।
(डॉ. सुधीर गर्ग)
(एकता- पुणे)
( यदि सहायता करने वाले की खुद की स्थिति भी खराब हो तो दुगनी इज़्ज़त कीजिए)
व्रती अपने व्रतों का रक्षण व पालन वैसे ही करते हैं जैसे माता-पिता अपने बच्चों का पालन (आगे बढ़ाने) तथा रक्षण (सही भोजन,पढ़ाई आदि)।
बच्चे रक्षण तो पसंद करते हैं पर पालन नहीं। व्रती भी प्राय: पालन में उत्साह कम रखते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिवार कमियों के साथ स्वीकारा जाता है।
धर्म में कमियों को सुधारा जाता है।
चिंतन
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