जो मानता स्वंय को सबसे बड़ा है,
वह धर्म से अभी बहुत दूर खड़ा है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

अच्छा इंसान फूल की तरह होता है,
जिसे  हम छोड़ भी नहीं सकते और तोड़ भी नहीं सकते,
तोड़ दिया तो मुरझा जायेगा और छोड़ दिया तो कोई और ले जायेगा ।

(ड़ा. अमित)

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