गर्व में सिर्फ घमंड़ है,
गौरव में घमंड़ तथा आनंद है ।
पं रतनलाल बैनाड़ा जी
‘E G O’ (EVIL GOING ON)
Is the only requirement to destroy any relationship.
So be the bigger person,
Skip the “E” and let it “GO”
(Miss. Ruchi)
अच्छा इंसान फूल की तरह होता है,
जिसे हम छोड़ भी नहीं सकते और तोड़ भी नहीं सकते,
तोड़ दिया तो मुरझा जायेगा और छोड़ दिया तो कोई और ले जायेगा ।
(ड़ा. अमित)
हम समझते कम हैं, समझाते ज्यादा हैं;
इसलिए सुलझते कम हैं, उलझते ज्यादा हैं !
श्री अंकुश
4 वर्षीय देवांशी जैन को उसके मामा ने 100 रू. का नोट भेंट किया ।
देवांशी ने नोट को उल्टा पकड़ा और वापिस करते हुये कहा – मुझे बुद्धु बना रहे हो, ये तो 001 का नोट है ।
संसार और परमार्थ की चीजें हमेशा एक दूसरे की उल्टी होती है ।
उसे कहाँ फ़ुरसत है, फ़रियाद सुनने की;
जो भी कहना है, कहो दो शब्दों में ।
A person interested in the physical decoration of himself,
has no energy left behind to develop his spiritual facilities.
(Mr. Sanjay)
नज़र और नसीब के मिलने का इत्तफ़ाक कुछ ऐसा है –
कि नज़र को पसंद हमेशा वही चीज़ आती है, जो नसीब में नहीं होती है ।
मरना भला विदेश का, जहाँ ना अपना कोय ,
माटी खायें जानवरा, महा महोत्सव होय ।
स्व. श्री खुशीलाल जी जैन – एटा
अकल बादाम खाने से नहीं, धोखा खाने से आती है ।
(श्री संजय)
Don’t let toxic and negative persons live on rent in your head,
raise the rent and kick them off.
(Ms. Apurva Jain)
सत्य की खोज में किये गये effort का नाम विज्ञान है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
चौबीस वर्षीय ऋषभ जैन अमेरिका में इंजीनियरिंग में Master Degree कर रहा है, छुट्टियों में भारत आया हुआ है ।
कुछ समस्याओं का हल ना मिलने पर माँ, उसकी इच्छा के विरूद्ध एक ज्योतिषी के पास ले गई, लौट कर ऋषभ बहुत दुखी हुआ ।
उसका कहना था – जिसे आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे गुरू पर विश्वास हो उसे किसी और के पास जाने की क्या जरूरत ?
उसने अपनी माँ को आचार्य श्री के पास भी भेजा ताकि वह प्रायश्चित ले सके ।
माँ ने जब आचार्य श्री को जब यह घटना सुनाई, तो आचार्य श्री काफी देर तक हंसते रहे और माँ लगातार रोती रही ।
आचार्य श्री ने कहा – प्रायश्चित तो तुम्हारा रोने से हो गया, भविष्य में यह दोहराना नहीं ।
विनय से पढ़ा गया शास्त्र विस्मृत हो जाने पर भी परभव में केवलज्ञान का कारण बनता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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