विज्ञान शिक्षा है, बाह्य है, स्मृति का विषय है,
धर्म साधना है, अंतरंग है, विस्मृति है ।
(सांसारिक अहं की विस्मृति)

पहले अनुकूल परिस्थतियों में आनंद से रहना सीखें,
फिर प्रतिकूल परिस्थतियों में आनंदित रहने की आदत ड़ालें ।

तब आप आनंद से परमानंद की ओर बढ़ने लगेंगे/मोक्ष नज़दीक आ जायेगा ।

चिंतन

समता की साधना और चारित्र की पवित्रता ही मोक्षमार्ग को प्रशस्त करती है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

सबसे बड़ा ऐव संकोच है,
यही हमारे कल्याण में बाधक है ।
यह आता है, इस भाव से कि – हम सबको प्रसन्न रखें ।
पर हम भूल जाते हैं कि – ना हम किसी को प्रसन्न रख सकते, ना नाराज़,
सब अपने अपने कर्मोदय से सुखी-दुखी होते हैं ।

क्षु. गणेशप्रसाद वर्णी जी

एक कदम चलने वाला भी हजारों मील चल लेता है, कहीं से चलें तो सही ( प्रारंभ तो करें ) |

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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