When a man does not repent for his ill deeds, his physical existence is like a mobile shrine in which the soul of an animal exists.

(Dr. Jamil Daud)

जब खर्च कर रहे हो तो मान के चलिए कि पुण्य की कमाई है,
और जब दान दे रहे हो तो मान के चलिए कि पाप की कमाई है,
सो दिल खोल के दान दें ।

मुनि श्री सुधासागर जी

आलोचक कैंची हैं जो बस काटते ही रहते हैं ।
प्रशंसक सुई हैं जो सिलते/जोड़ते रहते हैं ।
कैंची को दर्जी पैरों में रखता है, सुई को पगड़ी में रखता है ।
आप कहाँ रहना चाहते हो ?

मुनि श्री तरुणसागर जी

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