The world suffers a lot……………
Not because of the violence of bad people,
But because of the silence of good people.

(Dr. Sudheer)

हम सब 100 km/h या उससे अधिक की speed से अपने जीवन की गाड़ी दौड़ा रहे हैं।
ना तो side के सुंदर दृश्य देख पा रहे हैं, ना ही दौड़ने का आनंद।

जीवन में दौड़ तो जरूरी है पर चम्मच में नींबू लेकर दौड़ने वाली race |
नींबू हैं – हमारे परिवाजन, हमारी सेहत, moral आदि।
यदि नींबू गिर गये तो race बेकार।

नींबूओं का balance सम्भालते हुए जितना तेज दौड़ सकते हैं उतना ही दौड़ें ।

(श्री गौरव)

एक चित्रकार ने सड़क के किनारे चित्र रख दिया और नीचे लिखा –
इसमें यदि कोई त्रुटि दिखे तो उसे बताऐं ।
शाम को चित्र पर इतनी बड़ी  list बन गयी कि चित्र ही नहीं दिख रहा था।
अगले दिन उसने फिर चित्र रखा और नीचे लिखा त्रुटियों को सुधार दें।
शाम तक एक भी correction नहीं हुआ।

हम सबकी गलतियाँ तो बताते हैं, उन्हें सुधारना नहीं चाहते।

एक चित्रकार था दूसरा विचित्रकार( विचित्र चित्रकार), दोनौं में competition हुआ – एक हाल की एक दीवार चित्रकार को दी गयी और दूसरी विचित्रकार को ।  एक माह का समय दे दिया। बीच में पर्दा ड़ाल दिया गया।

एक माह बाद देखा कि चित्रकार ने संसार का बड़ा सुंदर चित्र बनाया है, निरीक्षकों ने बहुत तारीफ़ की ।  विचित्रकार की दीवार पर कुछ नहीं था, चमकती हुई साफ दीवार थी, एक माह तक उसने दीवार को खूब चमकाया था।

चित्र कहाँ है ?

पर्दा हटाओ ।

उस चमकती दीवार में सामने की दीवार का, संसार का चित्र दिख रहा था और उसमें चित्रकार, विचित्रकार तथा निरीक्षक भी दिखाई दे रहे थे।
संसार का चित्र और सजीव दिखने लगा था।

यदि हम अपनी आत्मा को ऐसे ही साफ करलें, चमका लें तो उसमें सारा संसार दिखने लगेगा, उसमें हमारा रूप भी दिखने लगेगा, केवल ज्ञान हो जाएगा ।

मुनि श्री क्षमासागर जी

सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा disinfectant है ।
क्योंकि इसमें चीजें स्पष्ट झलकती हैं ।

भ्रष्टाचार खत्म करने का भी सबसे अच्छा उपाय पारदर्शिता ही है ।
जिसके लिये श्री अण्णा हज़ारे आदि आमरण अनशन पर बैठे हैं ।
हम सब भी उनका सहयोग करें ।

श्री के. के. जैसवाल

एक सेठ के घर तोता पला था, वह उसे पिंजड़े में नहीं रखता था ।
एक दिन सेठ ने अपने घर के आसपास एक बिल्ली देखी ।
सेठ ने तोते को बताया कि –  बिल्ली आए, तो उड़ जाना ।
वह रोजाना उसे याद दिलाता था, तोता भी दिन भर बोलता रहता था – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना
एक दिन सचमुच बिल्ली आ गयी ।
तोता बोलने लगा – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना,  पर उड़ा नहीं,
बिल्ली तोते को खा गयी ।

हम भी अच्छी बातें बोलते हैं, पर समय आने पर क्रियान्वित नहीं करते हैं

  • तकिया : अच्छा वह माना जाता है जो मुलायम हो और मालिक के अनुसार अपना अस्तित्व बदल दे/अपना आकार बदल ले।
  • मनुष्य : अच्छे बुरे का ध्यान रखकर ही अपने को बदले, तकिये की तरह नहीं।
    ज़रूरत पड़ने पर कभी मुलायम, कभी कठोर बने।
  • आत्मा : जब तक संसार में है, शरीर के अनुसार अपना आकार बदलती है,
    मुक्त होने के बाद आकार बदलना बंद हो जाता है।

चिंतन

सरसरी निगाह से देखने का मतलब रूचि नहीं, सबकुछ गौण।
यदि किसी प्रिय वस्तु पर निगाह टिक गयी तो विकार आए बिना रहेगा नहीं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Q.  –    किसी के लिये बहुत ज्यादा करो और वो प्रतिक्रिया अच्छी न दे तो मन का दुखी होना स्वाभाविक है ना ?

श्रीमति शर्मा

A.  –   संसार के न्यायालयों में भी एक गुनाह की दो सजायें नहीं मिल सकतीं ।
फिर कर्म सिद्धान्त के न्यायालय में एक पुण्य-कर्म के दो इनाम कैसे मिल सकते हैं ?
पहला इनाम-पुण्य का फल तो आपके खाते में जमा उसी समय हो गया जब आप ने किसी के लिये कुछ किया ।
फिर आप सामने वाले से अच्छी प्रतिक्रिया के रूप में दूसरे इनाम की चाहना क्यों रखते हैं ?
वैसे भी सामान्य से अधिक यदि आप किसी के लिये कुछ करते हैं तो क्या आप कर्म-सिद्धान्त में दखलंदाजी नहीं कर रहे हैं ?
यह अधिकार आपको किसने दिया ?

सलाह –  किसी पर अति उपकार मत करो,
वरना बदले में आपके अंदर चाहना की भावना आना स्वाभाविक है ।

कैरम के खेल में अच्छा खिलाड़ी एक गोटी लेते समय यह ध्यान रखता है कि
अपनी तो अगली गोटी बन
जाऐ/ अच्छी Positon में आ जाऐ और दूसरे खिलाड़ी की बिगड़ जाए ।

हम भी यह संसारी खेल ऐसा ही खेलें –
अपनी गोटी ले लें याने वर्तमान का तो काम हो जाए और अगले जन्म रूपी गोटी बन जाए / अगला जन्म भी अच्छा हो जाए,
और पापकर्म रूपी गोटियों की Positon बिगड़ जाए ।

चिंतन

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