Inverter जैसे DC ( Direct Current ) Supply को AC (Alternative Current ) Supply में Convert कर देता है ।

ऐसे ही मोह में नकली असली और असली नकली लगने लगता है ।

चिंतन

हमारे अच्छे बुरे कर्मों का असर हमारे बच्चों और बच्चों के कर्मों का असर हम पर क्यों होता है ?

हमारे अच्छे बुरे में बच्चों कि अनुमोदना रहती है इसलिये उन पर भी असर होता है ।

श्री लालमणी भाई

पाषाण में भांति भांति की प्रतिमाऐं बनने की क्षमता है, जिस तरह की प्रतिमा का विकास कर लोगे वैसी ही मूर्ति बन जायेगी ।

आत्मा में भी सब सम्भावनाऐं हैं ।
विभावों को छोड़, स्वभाव की ओर बढ़ें ।

बहुत अच्छे तथा बहुत बुरे में भी कई समानताऐं होती हैं ।
जैसे बहुत कम प्रकाश में दिखता नहीं है, बहुत ज्यादा प्रकाश में भी नहीं दिखता है ।
बहुत कम Frequency सुनायी नहीं देती है, बहुत ज्यादा भी नहीं ।

बहुत बुरों में से उन बातों को ग्रहण कर सकते हैं ,जो अच्छों में भी हैं ।
जब ऐसा दॄष्टिकोण होगा तब हम – बुराई से दूर रहेंगे और बुरों से घृणा नहीं करेंगे ।

(श्री गौरव)

एक आदमी सत्संग से हमेशा दूर भागता था, गुरू को आगे आगे के समय देता रहता था । एक दिन वह मर गया, गुरु शमशान घाट पर उसे सत्संग सुनाने लगे ।
लोग हँसने लगे और बोले – मुर्दा क्या सुनेगा ।
गुरू – मुर्दे के बहाने तुम ज़िंदों को सत्संग सुना रहा हूँ ।
ऐसे ही समय निकल जायेगा, समय रहते सत्संग कर लो ।

‘इस धरा का, इस धरा पर सब धरा रह जायेगा ।’

सड़क पर किसी की पिटाई हो रही है ।
पिटने वाले का पापोदय, पीटने वाले निमित्त ।
पर आप क्यों नहीं बने निमित्त ?
आपका पुण्योदय चल रहा था या आपका पुरूषार्थ इतना प्रबल था कि पीटने के Temptation को रोक पाये ।

बुरे काम में निमित्त ना बनें, अच्छे काम में निमित्त जरूर बनें ।

चिंतन

एक राजा ने दो विद्वानों की खूब तारीफ़ सुनी। उसने दोनौं को अपने महल में बुलाया ।
एक विद्वान जब नहाने गया तो राजा ने दूसरे के बारे में पहले से उसकी राय पूंछी ।
पहला विद्वान – अरे ! ये विद्वान नहीं, बैल है ।
ऐसे ही राजा ने दूसरे से पहले के बारे में राय जानी ।
दूसरा विद्वान – ये तो भैंस है ।

जब दौनों विद्वान खाना खाने बैठे तो थालियों में घास तथा भूसा देखकर चौंक पड़े ।
राजा ने कहा – आप दोनौं ने ही एक दूसरे की पहचान बतायी थी, उसी के अनुसार दोनौं को भोजन परोसा गया है ।
दौनों की गर्दन शर्म से झुक गयी ।

रत्नत्रय 2

‘धर’ मतलब है रखना और ‘म’ मतलब है में ।

जब हम स्वयं को स्वयं में रखना शुरु कर देते हैं तो वहां से हम धर्म में प्रवेश कर जाते हैं ।

(कु. अज्ञा खुर्देलिया)

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