आचार्य श्री एक बार किसी गरीब के घर आहार के लिये गये, रोटियों के बर्तन में 6 रोटियाँ थीं, उन्होंने 2 रोटी खाने के बाद अंजुली छोड़ दी । ताकि चौके वाले पति-पत्नि को उनके हिस्से की 2-2 रोटियाँ मिल सकें ।
Appetite comes with eating.
स्नेह के संसर्ग (तेल) के कारण ही तिल को घानी में पिलना पड़ता है ।
दुश्मन ताकतवर हो तो हमला दोनों ओर से करें – बाहर से क्रियायें, अंदर से भी चिंतन आदि,
जैसे राजधानी (मन) में जासूस भेजे जाते हैं,
बाह्य और अंतरंग (जासूसों) में Communication Establish होना चाहिये वरना दुश्मन (अनादि संस्कार/कर्म) हारेगा नहीं,
राजधानी को जीतने के लिये, बाह्य छुटपुट किले जीतने से काम नहीं चलेगा ।
चिंतन
महावीर भगवान की जयन्ती पर
अहिंसा
अपरिग्रह
अनेकांत
आत्मस्वतन्त्रता
आपके जीवन में जयवंत हो ।
दान त्याग से पहले की स्थिति है ।
दान आंशिक है तथा त्याग पूर्ण है ।
नहीं छोड़ोगे तो छूट जायेगा ।
चेतन का भान होने पर, जड़ का महत्व कम हो जाता है ।
दया भाव है,
अनुकंपा उपाय है ।
मोह को छोड़ो, मोक्ष मिलेगा ।
करना क्या है ?
‘ह’ की जगह ‘क्ष’ लगाना है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Forgive is good, Forget is better, to move Forward is best.
Mr. Deepak Jain – USA
When you reach for stars, you may not quite get them, but you won’t come up with a handful of mud either.
कोई तुम्हें बातों के बीज दे,
तुम उनके फूलों के पौधे बनाकर ( अपनी क्रिया से ) अपने जीवन को सजा लेना ।
मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है ।
क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना रखता है, इसलिये ड़ूब जाता है |
मुनि श्री मंगलानंद जी
वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं ।
क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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