संयम चिमनी है, ज्ञान के दीपक को बाहरी हवाओं/ स्वयं की साँसों से बचाने तथा प्रकाश बढ़ाने के लिए।
राजा का महल जल गया पर वह विचलित नहीं हुआ। अगले दिन बड़ा फलदार पेड़ गिर गया, राजा बहुत रोया।
कारण ?
महल तो दो माह में नया बन सकता है पर ऐसा छाया/ फलदार पेड़ दो जन्मों में तैयार होता है।
संयम वर्तमान में छाया तथा भविष्य में फल देता है।
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संयम = सत् + यम = सत्य से बंध जाना, जीवन पर्यंत के लिए। जैसे
यमराज Forever के लिए ले जाता है।
संयम तीन प्रकार के…प्राणी तथा इंद्रिय लेकिन इनसे भी पहले प्राण(स्वयं के) संयम यानी स्वयं की रक्षा।

मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया

सत्य तो आत्मा का स्वभाव है।
तभी बोला जा सकता है जब रागद्वेष ना हो।
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झूठ वह जिसे बोलने से पहले सोचना पड़े।
सत्य के दो पहलू ….
1) भावात्मक …अनुभव आधारित। मैं सत्य, अन्य संदिग्ध भी हो सकते हैं जैसे जादूगर के कृत।
2) व्यवहारिक …प्रबंधक सहित/ सजा हुआ झूठ।

मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र. डॉ नीलेश भैया

शौच धर्म = अलोभ।
इच्छायें जमीनी धरातल से मेल नहीं खाती, उस Gap को कम करते जाना शौच-धर्म है।
लोभ = जो मेरा नहीं, वह मेरा हो जाए। पूरा न होने पर क्रोध/ बैर। पूरा होने पर मान। खुद की कमजोरी से पूरा न होने पर मायाचारी/ चोरी तक का सहारा लेते हैं।
जो है वह दिखता नहीं, आज दिख जाए तो कल दिखना बंद हो जाता है। आज दस में अभाव लगता है तो कल दस लाख में भी अभाव लगेगा।

ब्र.डॉ नीलेश भैया

आर्जव यानी सरलता। हालांकि सरल होना सरल है नहीं।
चुगली भी मायाचारी का एक रूप है।
कम से कम देव, शास्त्र, गुरुओं के साथ तो कपट न करें।
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आदमी बहुचित्त वाला होता है।
देखना होगा कि वे मुखौटे मजबूरी या ममता के कारण तो नहीं लगे हैं! पर हम सबको कपटी ही मानते हैं क्योंकि हम मायाचारी हैं। पुलिस भी कभी-कभी चारसौबीसी की वारदातों को सुलझाने में ठगों की मदद लेती है।
कपट शब्द कपाट से बना होगा, दोनों में छिपाना है।

मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया

यदि आपकी मौजूदगी दूसरों को असहज करती है तो उसका कारण है…मान।
अभिमान…अभी + मान। एक तो मेरी मानो यानी अपनी Identity को खत्म करके, वो भी “अभी” के अभी, जबकि सब अधूरे हैं।
Latin भाषा का एक शब्द है….Persona जिसका अर्थ है मुखौटे, इससे बना Personality. जिनके पीछे दुनिया पागल है।

ब्र.डॉ नीलेश भैया

क्षमा दो प्रकार से ….
1) नया क्रोध नहीं करना।
2) पुराने बैरों को समाप्त करके।
कैसे ?
पूर्व समय/ जन्म में किये गए अपने कृत्यों को विचार करके।
किसी पुस्तक के बीच के एक पन्ने को पढ़ कर सही निर्णय नहीं हो सकता है।

ब्र.डॉ. नीलेश भैया

जिसके सामने सब कुछ कह सकते हो, पर गुरु के कहने के बाद कुछ भी नहीं कह सकते। जैसे वकील जज के सामने कुछ भी कह सकता है पर जज के निर्णय देने के बाद कुछ भी नहीं कह सकता।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

पुलिस स्त्रीलिंग है सो उन्हें माँ जैसा व्यवहार करना चाहिये, जो बच्चों को गलती पर मारती भी है और सुधारने के लिये प्रेम भी करती है।
(दर्शनार्थ आये IG को संबोधन)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

रे जिया ! क्रोध काहे करै ?
वैद्य पर विष हर सकत नाही, आप भखऔ मरे।
(दूसरे का विष उतारने को वैद्य के विष खाने से विष उतरेगा नहीं)
बहु कषाय निगोद वासा*, क्षिमा ध्यानत तरै। रे जिया–
*नरक से भी दुखदायी पर्याय

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (द्यानतराय जी)

कुण्डलपुर यात्रा में टैक्सी ड्राइवर माध्यस्थ Speed से चल रहा था (80/90 k.m./h)।
कारण ?
पेट्रोल बचाकर इनाम पाया (1 हजार रुपये का)।
हम भी जीवन में Optimum Speed रखें (न कम, न ज्यादा) तो कार रूपी शरीर को स्वस्थ रखेंगे, पूरी उम्र जियेंगे।

चिंतन

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