पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप।
पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो रही है, पाप का बाप लोभ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
आचार्य श्री विद्यासागर जी को बताया गया कि अध्यात्म/ध्यान शिविर लगाया जा रहा है और उसके लिये बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाया जा रहा है।
आचार्यश्री ने कहा, “अध्यात्म तथा ध्यान तो स्वयं में, स्वयं के लिये और स्वयं के द्वारा होते हैं। फिर दूसरे विद्वान इसमें क्या करेंगे?”
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पूर्ण को जाना नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है जैसे पूरे चावलों को जानने चले (दबा-दबा कर देखा) तो चावल की जगह गूदा बन जायेगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
ऋतुओं में त्याग :
अगहन – ज़ीरा
पौसे – धना
माघे – मिश्री
फागुन – चना
चैते-गुड़
बैसाखे – तेल
जेठे – राई
असाढ़े – बेल
सावन – निम्बू
भादों – मही
क्वार – करेला
कार्तिक-दही
इन बारह से बच्यो नहीं, तो मर्यो, नहीं तो पर्यो सही!
(अगहन – Dec, पौष – Jan, माघ – Feb, फाल्गुन – March, चैत – April, वैशाख – May, ज्येष्ठ – June, आषाढ़ – July, श्रावण – Aug, भाद्रपद – Sep, अश्विन – Oct, कार्तिक – Nov)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सेवा करना चाहते हो तो ग्लानि और गाली को जीतना होगा।
सेवा करने की क्षमता और गाली सहने की समता बढ़ानी होगी।
मुनि श्री सौम्यसागर जी
मढ़िया जी में आचार्य श्री विद्यासागर जी मंच पर विराजमान थे। तेज़ ठंडी हवा चल रही थी। आ.श्री बिलकुल सहज बैठे थे, जबकि बाकी सब कँपकँपा रहे थे।
कारण पूछने पर आ.श्री ने कहा, “वेदना परिणामः प्रतिक्रिया”* यानि वेदना पर ध्यान देने से वेदना बढ़ती है।
यही आचार्य श्री की ज्ञानकला है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
*श्री धवला जी, 12वीं पुस्तक
“प्रभु का दास,
कभी उदास नहीं,
क्योंकि प्रभु है पास”
तब सोच…. जो हो सो हो (हमको क्या) कर्मों का फल सुनिश्चित फिर संयोग वियोग से घबराना क्यों ?
पत्नी/ बेटा/ बेटी तो परछायी हैं, कर्मों की।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
लिख रहा हूँ, यात्रा का विवरण,
मैं बिना लेखनी*|
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
(*अपने चारित्र के द्वारा प्रभावना करके)
S + HE = SHE
यानि –
1. HE, SHE में है/ से ही बनता है।
2. HE में कुछ और Add होकर SHE बनता है,
इस अपेक्षा से SHE, HE से बड़ा है।
एकता-चिंतन
(उन सोच वालों के लिए जो स्त्रियों को पुरुषों से छोटा मानते हैं)
“गुरो: सर्वत्र अनुकूलवृत्तिः”
(यानि गुरु जो कहते/चाहते हैं, वह सब मेरे अनुकूल/भले के लिये है)
इसका हमेशा पालन अनिवार्य है। इसको विनय कहते हैं, इसके बिना मोक्ष का द्वार बंद।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
He who pours water hastily into a bottle spills more than goes in.
(J.L.Jain)
पाप में लाभ न दिखे फिर भी पाप करना व्यसन है।
मुनि श्री सुधासागर जी
कमजोर जो आकुल है/ बल का प्रयोग करता है।
बलवान जो निराकुल है/ सहन करता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पुलिस अपराधी को तब तक पीटती रहती है जब तक वह अपराध स्वीकार नहीं कर लेता।
हमको भी कर्म तब तक पीटते रहेंगे जब तक हम गलती स्वीकारते/प्रायश्चित नहीं करते।
मुनि श्री सुधासागर जी
Pages
CATEGORIES
- 2010
- 2011
- 2012
- 2013
- 2014
- 2015
- 2016
- 2017
- 2018
- 2019
- 2020
- 2021
- 2022
- 2023
- News
- Quotation
- Story
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण – अन्य
- संस्मरण – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
- वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत – अन्य
- प्रश्न-उत्तर
- पहला कदम
- डायरी
- चिंतन
- आध्यात्मिक भजन
- अगला-कदम
Categories
- 2010
- 2011
- 2012
- 2013
- 2014
- 2015
- 2016
- 2017
- 2018
- 2019
- 2020
- 2021
- 2022
- 2023
- News
- Quotation
- Story
- Uncategorized
- अगला-कदम
- आध्यात्मिक भजन
- गुरु
- गुरु
- चिंतन
- डायरी
- पहला कदम
- प्रश्न-उत्तर
- वचनामृत – अन्य
- वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण – मुनि श्री क्षमासागर
- संस्मरण – अन्य
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
Recent Comments