“निजप्रकाश” क्या किसी प्रकाशन में कभी दिखा ?
पर ढूंढते हैं – मंदिर, माला, ग्रंथों में।
जहाँ देखन हारा है/ जानन हारा है, वहाँ नहीं ढूंढते !
मुनि श्री समयसागर जी
प्रशासक को ताड़ना देनी पड़ती है पर उतनी, जितनी किसान अपने बैल को देता है।
शाम होने पर बैल अपने आप किसान के घर आ जाते हैं।
ताड़ना से प्यार/ Care ज्यादा।
मुनि श्री सुधासागर जी
इस भव की/ Short Term चिंता करने वाला पैसे के पीछे भागता है,
भविष्य के भवों/ Long Term की चिंता करने वाला पैसे से दूर भागता है।
मुनि श्री दुर्लभसागर जी
दाहसंस्कार के समय सिर को फोड़ा जाता है ताकि अंदर से भी पूरी तरह राख बन जाय, अधूरी रह गयी तो कितनी वीभत्स दिखेगी।
जिंदा में सारी मेहनत बाह्य को सजाने-संवारने में, कभी अंतरंग की वीभत्सता को दूर करने की कोशिश की ?
चिंतन
सूरज नित्य लौटता है इसलिये नित्य पूर्ण तेजस्विता/ सुंदरता से फिर-फिर आता है।
अभिमन्यु लौटना नहीं जानता था/ लौट नहीं पाया, सो अंत को प्राप्त हुआ।
क्या हम लौटना चाहते/ जानते हैं !
(एन.सी.जैन- नोएडा)
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं… “जो काम पत्र से हो जाय उसके लिये पत्रिका का सहारा क्यों ?”
मुनि श्री संधानसागर जी
अनेकांत = सबका स्वागत/ स्वीकार (अपेक्षा सहित)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पंछियों को ऊपर उठने के लिये पंखों की ज़रूरत होती है; मनुष्य को विनम्रता की, जितनी-जितनी विनम्रता बढ़ेगी, उतना-उतना वह ऊपर उठेगा।
(एन.सी.जैन)
जिसे मरण से भीति नहीं, जन्म से प्रीति नहीं, वही आध्यात्म को पा सकता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पुण्य करने वालों के जीवन में धर्म हो भी या ना भी हो,
परन्तु धर्म करने वाले को पुण्य मिलेगा ही।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
लाठी से सिर फूटता है, पर (सिर्फ) लाठी कभी सिर फोड़ सकती नहीं।
दुःखी कर्मों से होते हैं, पर कर्म दुःखी कर सकते नहीं।
उनके पीछे कोई और रहता है – लाठी के पीछे दुश्मन, कर्म के पीछे हम स्वयं।
मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म साता के साथ… पुण्य + साता का बंध
धर्म असाता के साथ… पुण्य + असाता का बंध
अधर्म असाता के साथ… पाप + असाता का बंध
अधर्म साता के साथ… पाप + साता का बंध
जैसा बंध वैसा ही पुण्य/ पाप फल साता/ असाता के साथ मिलेगा।
चिंतन
संस्मरण…
मेरे आँगन में एक अमरूद का पेड़ है।
अचानक उसमें से गंदा-गंदा रस टपकने लगा। दवायें प्रयोग की गयीं पर लाभ नहीं हुआ। तब मैंने प्यार से उस पेड़ पर हाथ फेर कर प्रार्थना की। अगले दिन से आँगन साफ रहने लगा। अब मैं रोज उस पेड़ को प्यार करती हूँ।
परवीन- ग्वालियर
गुरु सिर्फ दर्शन (देखने) की चीज़ नहीं,
उनके दर्शन आत्मदर्शन करने में निमित्त हैं।
जिन लोगों से धर्म की प्रभावना होती है (या धार्मिक आयोजनों से सम्बंधित हों) उनको अधिक समय दिया जाता है।
उनके पुण्य भी सामान्यजन से विशेष/ अधिक होते हैं।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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