सजावट के लिए बाजार से सामान लाना या घर में रखी चीजों से सजावट करना !
खुश रहने के लिए सामग्री जमा करना या जो भी हमारे पास है, उसमें खुश रहना !!
शादी के लिए अपनी Choice के लड़के लड़की Select करना या घर वाले, परिवार आदि देखकर जो लायें, उनके साथ Adjust करके खुश रहना !!!
स्थायी खुशी किसमें ?

चिंतन

अंतरंग-दर्शन के लिए चिंतन (चेतना है तो चिंतन होना भी चाहिए) ।
बाह्य-दर्शन के लिए उपनयन (“उप”-पास से, पर साफ दृष्टि होनी चाहिए तभी सही दर्शन होंगे) ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

एक ग्वालन लोगों को नाप नाप कर दूध दे रही थी बदले में पैसे ले रही थी ।
पास ही एक साधु हाथ में माला ले भगवान के नाम की जाप शुरू करने की तैयारी कर रहे थे । उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति को ग्वालन ने बिना पैसे लिए, बिना नापे, बड़ा बर्तन पूरे उ दूध से भर दिया । पता लगा
कि वह व्यक्ति उस ग्वालन का प्रेमी था ।
साधु ने माला छोड़ दी- “मैं अपने परम प्रेमी का नाम गिन गिन कर लेता हूँ, बदले में मोक्ष आदि की चाहना भी करता हूँ, मुझसे तो यह ग्वालन अच्छी है” ।

(ब्र.रेखा दीदी)

विज्ञान आगे बढ़ना चाहता है/बढ़ता भी है पर संस्कृति को कुचलते हुए ।
वीतराग-विज्ञान आगे बढ़ाता है संस्कृति को संरक्षण देते हुए ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सुंदरता के साथ जब चारित्रिक-गुण मिल जाते हैं तब वह मंगलरूप-चेहरा हो जाता है और उनके दर्शन मंगलकारी बन जाते हैं जैसे आचार्य श्री विद्यासागर जी ।
सिर्फ सुंदरता तो बहुतों में मिल जाती है पर वह राग उत्पन्न करने वाली होती है।

मुनि श्री सुधासागर जी

तीन तरह के लोग होते हैं, उसी के अनुसार उनको याद किया जाता है–
1. विशेष गुण वाले ।
2. अवगुण या शारिरिक कमी वाले ।
3. सामान्य – जो किसी को बाधा नहीं पहुँचाते, शांति से अपना जीवन-यापन करके चुपचाप चले जाते हैं ।

हम अपने आपको कैसे याद करवाना पसंद करेंगे !

चिंतन

कलयुग (पंचमकाल) में भगवान तो नहीं बन सकते, उसके लिये तो बहुत परिश्रम/ त्याग करना होता है;
पर भक्त बनना आसान है, बस समर्पण करना होता है।

मुनि श्री सुधासागर जी

सीता जी की अग्नि परीक्षा का नतीज़ा तो परीक्षा लेने व देने वाले पहले से ही जानते थे।
बस दुनिया को नतीजा पता लगना था ।
परीक्षा तो अग्नि की थी – सत्य और कर्त्तव्य के बीच चयन करने की ।

राजमार्ग – राजा के द्वारा बनाया गया मार्ग,
सुविधाजनक, बहुतायत उस पर चलते हैं,
निष्कंटक,
सुंदर क्योंकि उस पर फूल बिछे रहते हैं,
बनाने में बहुत हिंसा होती है।
मोक्षमार्ग – भगवान/ गुरु के द्वारा निर्मित,
कठिन, बहुत कम इस पर चल पाते हैं,
कंटक युक्त,
उबड़-खाबड़,
पर अहिंसक, भविष्य निष्कंटक/ सुविधाजनक ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

चिड़िया भी मनुष्यों की तरह बच्चों का लालन पालन/सुरक्षा देती है पर उन्हें उड़ना सिखाती/उड़ जाने देती है ।
मनुष्य अपने बच्चों को पकड़े ही रखना चाहता है ।
इसीलिये चिड़िया आसमान में और मनुष्य धरती पर है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

दिगम्बर वेश को देखकर, ज्यादातर को वैराग्य के भाव आते हैं, कुछ को विकार के ।
तो कपड़ा कुछ विकारी आंखों पर डालना तर्क संगत होगा या दिगम्बरत्व पर !

मुनि श्री महासागर जी

दान क्यों ?
पाप के प्रक्षालन के लिये ।
पापी कौन ? देने वाला या लेने वाला ?
कृतज्ञता कौन माने, देने वाला या लेने वाला ?
(जो कृतज्ञता न माने, वह पापी)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930