“I have many problems in my life.
But my lips don’t know that”.
They just keep smiling.” ― Charlie Chaplin
(Manju)
सागर आते समय एक वृद्धा आचार्य श्री विद्यासागर जी के पैर धोने लुटिया में जल लेकर भीड़ में से निकलकर आचार्य श्री की ओर बढ़ी ।
कार्यकर्ताओं ने रोक कर उसे पीछे कर किया तो लुटिया का जल आचार्य श्री के चरणों में जा गिरा ।
आचार्य श्री – भक्त्ति का प्रवेश हर जगह/परिस्थिति में हो ही जाता है।
संसार-मार्ग पर टिक नहीं सकते, पर टिकना चाहते हो !
मोक्ष-मार्ग पर टिक सकते हैं, पर टिकना नहीं चाहते हो !!
मुनि श्री महासागर जी
- पर्युषण पर्व के 10 दिनों में जो विशुद्धता आयी, उससे क्षमा के भाव बनते हैं।
- सही तरीका तो यह है कि जिनसे पिछ्ले दिनों में बैर हुआ है, उनसे बुजुर्ग लोग मन मुटाव को दूर करायें या हम स्वयं अपने मन मुटाव को दूर करें।
- श्री रफी अहमद किदवई (केन्द्रिय मंत्री) की अपने मित्र से नाराजगी हो गयी, मित्र ने अपने लड़की की शादी में उन्हें नहीं बुलाया पर वे अपने परिवार सहित उपहार लेकर पहुँच गये और मन मुटाव सौहार्द में बदल गया।
- क्रोध कम समय के लिये होता है,
बैर लंबे समय के लिये होता है ।
गुरुजन कहते हैं कि बैर क्रोध का अचार है।
- जो कर्म पूरब किये खोटे, सहे क्यों नहीं जीयरा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी नित्य प्रवचन में कहते हैं जो मेरा अपकार कर रहा है वह (आत्मा) तो दिख नहीं रहा है,
जो दिख रहा है (शरीर) वह अपकार कर नहीं सकता।
तो मैं बुरा किसका मानूं ?
- धर्म की अनुभूति के लिये सबसे पहले बैर आदि दूर करने होंगे।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल)
- क्षमा भाव मन में रमें,
सत्य सरलता साथ,
शुभ मंगलमय जीवन में,
प्रभु भक्ति के भाव ।
माँ ( श्रीमति मालती जी)
- जनसंख्या की वृद्धि रोकने के लिये परिवार नियोजन की जरूरत नहीं, पाप के नियोजन की जरूरत है ।
- वासना ही है जो उपासना और आत्मा की साधना में बाधक है ।
- ब्रम्हचर्य की रक्षा कैसे की जाये ?
स्वाध्याय, ध्यान, संयमीयों का सत्संग, शील पालन में सहायक होता है ।
नशा, अपशब्द, शरीर का श्रंगार ये बाधक होते हैं । - ब्रम्हचर्य कवच है, ये किसी तरह के भी दोष नहीं आने देता ।
(जैसे मूंगफली में तेल होता है तो उसमें विषाणु नहीं आते, इसी प्रकार ब्रम्हचर्य का तेज शरीर के रोम रोम में हो जाता है, उसमें किसी तरह के रोग या विकार नहीं आ पाते हैं – चिंतन)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
- 1995 के बीना-बारहा में आचार्य श्री के चातुर्मास में तीन विदेशी लोग आये,उन्होंने पूछा – इतनी कम उम्र में आप ब्रम्हचर्य कैसे रख पाते हैं जबकि आपके आसपास तमाम स्त्री और युवा लड़कियाँ आहार के समय आपको घेरे रहतीं हैं ?
बच्चा जब काफी बड़ा हो जाता है तब तक उसकी माँ और बहनें उसे नहलाती रहतीं हैं,
(जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तब भी बेटी और बहनें उसे नहलाती हैं) तो उनको विकार आता है क्या ?
मैं हर स्त्री में माँ, बहन और बेटी देखता हूँ तो मुझे विकार कैसे आयेंगे ?
विदेशी बोले – महावीर के बारे में पढ़ा तो बहुत था पर देखा आज । - माली का काम सिर्फ उगाना ही नहीं उन्हें भगवान के चरणों तक पहुँचाना भी है ।
हम गृहस्थों का काम सिर्फ बच्चों की उत्पत्ति ही नहीं, उनको भगवान के चरणों तक ले जाना भी है । - आज गृहस्थी पाँच पापों की नाली बन गयी है, गृहस्थी में रहते हुये ये पाप ना भी बहें, हमारे अंदर तक बदबू तो कम से कम आयेगी ही ।
- रति वे करते हैं जो काम के रोगी हैं, कुत्ता/चील भी शरीर में रति करते हैं पर वो क्षुधा के रोगी हैं, हम काम के रोगी हैं ।
मुनि श्री कुन्थुसागर जी
- ग्रह उनको ही लगते हैं, जिन पर परिग्रह होती है ।
- तन के अनुरूप ही मन का नग्न होना, आकिंचन्य है ।
- तुम्बी तैरती,
तैराती औरों को भी,
सूखी या गीली ?
सूखापन होना ही आकिंचन्य धर्म है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
-
- आकिंचन्य का उल्टा – परिग्रह ।
“परि” यानि चारों ओर, “ग्रह” यानि आपत्तियां । - आ – आत्मा
किंचन – कुछ या किंचित
जिसका “कुछ” संसार हो और मुख्य आत्मा हो उसके आकिंचन्य धर्म होता है । - परिग्रह और परिचय ये दोनों ही आकुलता के कारण हैं ।
उस बाबाजी की लंगोटी की तरह जिसने एक लंगोटी रखने के लिये पूरी गृहस्थी बसा ली थी ।
कागज के टुकड़े में एक हजार रुपये की शक्ति है, ऐसे ही लंगोटी में भी पूरी गृहस्थी बसाने की शक्ति है । - परिग्रह यानि अपूर्ण/परतंत्र ।
इसीलिये परिग्रह दु:ख का कारण है । - संसार में अकेलापन दुखदायी लगता है, पर परमार्थ में अकेलापन सुखदायी है ।
- ब्लड रिपोर्ट जब नार्मल होती है तब कहते हैं कि कुछ नहीं निकला और जब Defect होता है तब कहते हैं कि कुछ आया है,
ये “कुछ” ही हमारे जीवन में Defect लाता है । - हावड़ा ब्रिज देखने तमाम लोग जाते हैं क्योंकि वो बिना किसी सपोर्ट के है,
ना लंगोट, ना सपोर्ट, ना वोट, ना खोट, उनके आकिंचन्य धर्म होता है, जिसे देखने देवता भी आते हैं। - एक राजा जंगल में भटक गया, एक साधू की कुटिया में रुका, साधू को उसने रात भर आनंद में देखा, सुबह उसने पूछा – अकेले बिना किसी सपोर्ट के कैसे जीवन बिताते हो ?
साधू ने कहा कि तुमने कैसे रात बितायी, तुम्हारे पास भी तो कोई सपोर्ट नहीं था ?
राजा – मैं तो सोच रहा था कि एक दिन का मुसाफिर हूँ, काट लूंगा ।
साधू – मैं भी यही सोचता हूँ की मैं भी एक ज़िंदगी का ही तो मुसाफिर हूँ, ऐसे ही निकाल लूंगा ।
साधू बेघर होकर भी अपने घर में है, गृहस्थ घर वाला होकर भी बेघर रहता है ।
- आकिंचन्य का उल्टा – परिग्रह ।
मुनि श्री कुन्थुसागर जी
-
- आप आम को खाने से पहले उसे दबा दबा कर ढ़ीला करते हैं, फिर उसके ऊपर से टोपी (डंठल) हटाते हैं, खाने से पहले चैंप निकालते हैं वर्ना फोड़े फुंसी हो जाते हैं।
त्याग धर्म में दबा दबा कर ढ़ीला करने का मतलब -अंटी ढ़ीली करना,
डंठल हटाने का मतलब – अपने घर के खजाने पर से ढक्कन खोलना,
चैंप निकालने का मतलब – उपयोग से पहले त्याग करना,
त्याग नहीं करोगे तो जीवन दूषित हो जायेगा।
- आप आम को खाने से पहले उसे दबा दबा कर ढ़ीला करते हैं, फिर उसके ऊपर से टोपी (डंठल) हटाते हैं, खाने से पहले चैंप निकालते हैं वर्ना फोड़े फुंसी हो जाते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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- यदि आमदनी का 10 प्रतिशत दान करते हैं , तो अपने समय का ,कार का उपयोग भी धर्म के खाते में 10 प्रतिशत जाना चाहिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
- एक कंजूस सेठ को बावर्ची ने बहुत घी लगी हुयी रोटी दी।
सेठ नाराज हुआ, इतना घी !
बावर्ची बोला क्षमा करें, गलती से मेरी रोटी आपके पास आ गयी ।
उपयोग नहीं करोगे तो चोर उसका दुरुपयोग करेंगे ।
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- हाथी के एक कौर में से एक छोटा सा टुकड़ा गिर जाने से हजारों चीटिंयों का पेट भर जाता है ।
तो क्यों ना दान करें !
- हाथी के एक कौर में से एक छोटा सा टुकड़ा गिर जाने से हजारों चीटिंयों का पेट भर जाता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर
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- कमरे में एक खिड़की खोलो तो थोड़ी सी ताजा हवा आती है, दूसरी खिड़की खुलते ही Cross Ventilation शुरू हो जाता है,
एक खिड़की से हवा आती है, दूसरे से निकलती रहती है, स्वास्थ के लिये भी लाभदायक होता है ।
और यदि Exhaust fan लगा दो तो ज्यादा फ़ायदा होता है ।
इसमें पहली खिड़की आमदनी की, दूसरी खिड़की दान की ।
आमदनी की खिड़की ज्यादा बड़ी होने पर आने वाली हवा (दौलत) के साथ साथ हानिकारक कीटाणु भी आ जाते हैं ।
- कमरे में एक खिड़की खोलो तो थोड़ी सी ताजा हवा आती है, दूसरी खिड़की खुलते ही Cross Ventilation शुरू हो जाता है,
चिंतन
- तप प्रकाशन के लिये नहीं ,प्रकाशित करने के लिये होना चाहिये, आत्मा को प्रकाशित करने के लिये ।
- मोक्ष साधन वाले नहीं जाते ,साधना वाले ही जाते हैं ।
- बिना तपे धातु शुद्ध नहीं होती तो आत्मा कैसे शुद्ध कैसे हो सकती है ?
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
- अचेतन तो सिर्फ बाह्य तप से शुद्ध हो सकता है पर चेतन को शुद्ध करने के लिये चेतनता /श्रद्धा चाहिये ।
चिंतन
- अपने मन-वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना, नियमित कर लेना, नियन्त्रित कर लेना, इसी का नाम संयम है।
- यदि हमने अपने जीवन में सत्य-ज्योति हासिल कर ली है तो हमारा दायित्व है, हमारा कर्तव्य है कि हम उस पर संयम की एक चिमनी भी रख दें जिससे वह सच्चाई की ज्योति कभी बुझ नहीं पाये।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
- जिसका मन जितना सच्चा होगा उसका जीवन भी उतना ही सच्चा होगा ।
- जीवन उन्हीं का सच बनता है जो कषायों से मुक्त हो जाते हैं ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
उत्तम शौच ( लोभ न करना ) :-
अपन आनन्द लें उस चीज़ का जो अपने को प्राप्त है ।
लेकिन जो अपने पास है वह दिखता नहीं, जो दूसरों के पास है हमें वह ही दिखता है।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
- आर्जव धर्म , मायाचारी का उल्टा यानि सरलता ।
- मायाचारी व्यक्ति प्राय: साँप जैसा होता है, ऊपर से सुंदर और चिकना, पर अंदर से ज़हरीला और पकड़ में ना आने वाला ।
- आज कपट जीवन के हर खेल में घुसपैठ कर चुका है, यहाँ तक कि धर्म में भी ।
- कपट से हानि –
1. अविश्वसनीयता।
2. कभी ना कभी पकड़े जाते हैं और फिर ज़िंदगी नरक बन जाती है ।
3. शास्त्रानुसार अगले जन्म में जानवर बनते हैं ।
- जीवन से कपट कैसे दूर करें ?
1.स्पष्टवादी बनें ।
मन में होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सो करिये ।
2. जीवन में सादगी लायें, अपनी आवश्यकतायें कम करें।
3. आत्मचिंतन करें – आत्मा का रूप शुद्ध है ।
4. अच्छे शास्त्रों का अध्ययन करने की आदत डालें ।
5. अपनी संगति ऐसे लोगों से रखें जो भौतिकवाद की दौड़ में ना हों ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल)
मान निम्न रूपों में आता है…
अहंकार
तिरस्कार
ईर्षा भाव के रूप में
क्या मान करना स्वाभाविक नहीं है ?
नहीं, अज्ञानता का परिणाम है ।
अपनी प्रशंसा, दूसरों की निंदा करना भी मान का ही रूप है ।
मान को अपने जीवन से हटाने के लिये दूसरों के गुणों की प्रशंसा करें, अपने दोषों को देखें, सोचें की आत्मा के अनंत गुण हैं, मुझमें अगर थोड़े से गुण आ गये तो मैं इसमें इतरा क्यों रहा हूँ !
और ज्ञाता दृष्टा बनकर रहें, हम सब अपने जीवन में विनयशीलता लायें और मान को हटायें ।
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