इनमें प्राय: साधुता वाले गुण ज्यादा पाये जाते हैं…. स्थिरता, क्षमा, दया, वात्सल्य आदि। उम्र के साथ ये बढ़ते जाते हैं।
इसका बड़ा प्रमाण यह है कि भारत शब्द पुल्लिंग है; किंतु भारत देश की प्रकृति स्त्री चरित्र रूप है इसीलिए ‘भारत को माता’ के तौर पर वर्णित किया गया है।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
एक में हर्ष तो हो सकता है, लेकिन संघर्ष दो के बीच में ही होगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
चिड़िया के बच्चे ने माँ से पूछा –
ये कैसा जीव है! चलता तो हमारी तरह दो पैरों से ही है पर दो हाथ क्यों हिलाता चलता है ?
ये मनुष्य है, इसको तो चार हाथ भी कम लगते हैं*।
चिंतन
* दो हाथ की जगह यदि चार हाथ होते।
सत्य असत्य दोनों नहाने गये। असत्य ने सत्य के कपड़े पहन लिये। वही कपड़े पहने आज भी घूम रहा है।
सत्य जब तक जूते पहन पाता है, असत्य मंजिल पर पहुँच जाता है।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
आँखें न मूँदो*,
आँखें भी न दिखाओ**,
सही देखना***।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* अन्याय को नज़र अंदाज़ न करना।
** क्रोध/ घमंड नहीं करना।
*** यथार्थ देखना।
लघु को गुरु बनाना*, गुरुकुल परम्परा है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(* गुरु के कुल में शामिल कर लेना)
एक विधवा महिला मंदिर में फूल तथा Waste सब भगवान को समर्पित करतीं थीं।
कारण ?
“सर्वस्व समर्पयामि”।
जब हमारा भगवान एक ही है तो अच्छा बुरा सब उसी को अर्पित करेंगे न !
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
नकारात्मक ….काफ़ी अकेला हूँ।
सकारात्मक …अकेला काफ़ी हूँ।
(एकता-पुणे)
भारतीय संस्कृति मानवतावादी,
पाश्चात्य मानववादी (मानव के लिये कितने भी जीवों का संहार करना पड़े तो करो)।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
श्रमण … मैं ही मैं हूँ (क्योंकि स्व में प्रतिष्ठित),
श्रावक …तू ही तू है* ( क्योंकि गुरु/ भगवान की भक्ति की प्रधानता)।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
* दुर्भाग्य(बहुमत), धन दौलत तथा प्रियजनों को ही “तू ही तू है” मानता/ कहता रहता है।
पशु न बोलने से दुःख उठाते हैं,
मनुष्य बोलने से।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
व्रत निधि है, विरति निषेध*।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (19 अगस्त 2024)
* पापों को ना कहना/ नहीं करना।
दर्शन की पैदाइश* से दुःख।
दर्शन-शुद्धि सो जीवन शुद्धि।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
* देखने के भाव
एक राजा ने चित्रकारों की एक प्रतियोगिता कराई।
इसमें किसी ने खेत दिखाया, इतना सजीव कि गाय भ्रमित हो गई।
किसी ने फूल दिखाये तो तितलियाँ/भँवरे भ्रमित हो गये।
पर्दा हटाते ही ये सब होता था।
एक चित्रकार ने राजा को बोला कि वो खुद पर्दा हटायें, राजा हटाने लगा तो पता लगा कि वो पर्दा नहीं पेंटिंग थी, यानी राजा खुद भ्रमित हो गया।
ये पर्दा है काहे का ?
मोह का पर्दा, जो हम सबको खुद हटाना होगा,
और हम सारे के सारे भ्रमित हुए पड़े हैं।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (17 अगस्त 2024)
Pages
CATEGORIES
- 2010
- 2011
- 2012
- 2013
- 2014
- 2015
- 2016
- 2017
- 2018
- 2019
- 2020
- 2021
- 2022
- 2023
- News
- Quotation
- Story
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण – अन्य
- संस्मरण – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
- वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत – अन्य
- प्रश्न-उत्तर
- पहला कदम
- डायरी
- चिंतन
- आध्यात्मिक भजन
- अगला-कदम
Categories
- 2010
- 2011
- 2012
- 2013
- 2014
- 2015
- 2016
- 2017
- 2018
- 2019
- 2020
- 2021
- 2022
- 2023
- News
- Quotation
- Story
- Uncategorized
- अगला-कदम
- आध्यात्मिक भजन
- गुरु
- गुरु
- चिंतन
- डायरी
- पहला कदम
- प्रश्न-उत्तर
- वचनामृत – अन्य
- वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
- वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण – मुनि श्री क्षमासागर
- संस्मरण – अन्य
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
- संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
Recent Comments