केवल श्रद्धान से विषयों के प्रति झुकाव रुकता नहीं।
सौधर्म इन्द्र क्षायिक सम्यग्दृष्टि होते हुये, जौंक की तरह विषयों को छोड़ता नहीं है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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विषय मन को मिलाकर अठ्ठाईस होते हैं,भोग का तात्पर्य तो वस्तु भोगने में काम आतीं हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रद्वान से विषयों के प़ति झुकाव रूकता नहीं है, बल्कि द्वढ संकल्प लेना चाहिए ताकि विषय भोगों में रुचि कम हो सकतीं हैं।जब तक विषय भोगों में आशक्ति होगी तो जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है।जो उदाहरण स्वयं इन्द़ के लिए दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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विषय मन को मिलाकर अठ्ठाईस होते हैं,भोग का तात्पर्य तो वस्तु भोगने में काम आतीं हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रद्वान से विषयों के प़ति झुकाव रूकता नहीं है, बल्कि द्वढ संकल्प लेना चाहिए ताकि विषय भोगों में रुचि कम हो सकतीं हैं।जब तक विषय भोगों में आशक्ति होगी तो जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है।जो उदाहरण स्वयं इन्द़ के लिए दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।