परिणाम
परिणाम दो प्रकार के –>
- अनादि परिणाम → अनादि से उसी रूप चल रहे हैं जैसे सुमेरु पर्वत। ये पकड़ में नहीं आते।
- सादि परिणाम →
i) वैस्रसिक…. स्वभाव से / निरपेक्ष जैसे मेघ, हवा, औपशमिक भाव।
ii) प्रायोगिक… प्रयोग के माध्यम से, पुरुष के द्वारा गुणस्थान कषाय की तीव्रता/
मंदता से, हमारे हाथ में नहीं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/22)
3 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने परिणाम को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
प्रायोगिक me jo de rakha hai :
a) “प्रयोग के माध्यम से, पुरुष के द्वारा गुणस्थान कषाय की तीव्रता/मंदता से” ka meaning explain karenge, please ?
b) Secondly ye humare haath me kyun nahi hain? Ise clarify karenge, please ?
प्रयोग से भी/ कुछ चीज प्रयोगात्मक। पर कषाय की मंदता के लिए आप बाह्य क्रियाएं कर सकते हो पर उन क्रियायों से अंदर का गुणस्थान घटे बढ़े, वह तुम्हारे हाथ में नहीं क्योंकि पूर्व के कर्म भी इसमें इंपॉर्टेंट रोल अदा करते हैं।