Category: अगला-कदम

सत्य वचन

10 प्रकार – 1. जनपद 2. सम्मति 3. स्थापना 4. नाम 5. रूप – जो दिख रहा है 6. प्रतीत्य – लम्बा/बड़ा 7. व्यवहार –

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भूख

भूख लगने के…. बाह्य कारण → 1. आहार-दर्शन → भोजन करने पर भी इच्छा। 2. उपयोग → ध्यान में लाने/सोचने से। 3. कोठा खाली होने

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संज्ञा

आहार संज्ञा → 6ठे गुणस्थान तक लेकिन इस गुणस्थान में हर समय आहार की इच्छा नहीं। भय संज्ञा → 8वें गुणस्थान तक पर 7वें गुणस्थान

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असत्य/उभय – मन/वचन योग

असत्य/उभय-मन/वचन योग का मूलकारण → ज्ञान पर आवरण (दर्शन तथा चारित्र मोहनीय इसलिये नहीं कहा क्योंकि ये संयमी के भी पाये जाते हैं – जीवकांड

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तैजस/कार्मण शरीर

तैजस शरीर के उत्कृष्ट संचय 66 सागर (7वें नरक से निकलकर तिर्यंच फिर 7वें नरक), संक्लेश के सदभाव में। कार्मण शरीर के उत्कृष्ट संचय का

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कार्मण/नोकर्म द्रव्य

कार्मण द्रव्य बंधने के बाद एक आवली + एक समय तक स्थिर रहता है (इस काल में परिवर्तित नहीं कर सकते)। इसे कहते हैं →

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निवृत्ति-अपर्याप्तक

क्या अपर्याप्तक अवस्था में पर्याप्त-नामकर्म के उदय में निम्न पर्याप्तियें पूर्ण हो जाती हैं ? (एकेइंद्रिय-4, विकलेंद्रिय-5, संज्ञी-6) 1. मत – जब तक दूसरी(शरीर) पर्याप्ति

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अपर्याप्तक के प्राण

1 इंद्रिय के 3 प्राण (स्पर्शन इंद्रिय, काय-बल, आयु), 2 इंद्रिय के 4 प्राण (3 + रसना), 3 इंद्रिय के 5 प्राण (4 + घ्राण),

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योगों का काल

सत्य, असत्य, उभय तथा अनुभय प्रत्येक का काल अंतर्मुहूर्त। पूर्व दो की अपेक्षा उत्तरोत्तर का काल क्रम से संख्यातगुणा संख्यातगुणा है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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निगोदिया

पर्याप्तकों तथा अपर्याप्तकों की प्रक्रिया अलग-अलग होती है। काय-स्थिति → निगोद में ही लगातार जन्म मरण… उत्कृष्ट → असंख्यात सागरोपम कोड़ा-कोड़ी सागर जैसे जलेबी का

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मंगल आशीष

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