Category: अगला-कदम
आयुकर्म
आयुकर्म कुछ अपेक्षाओं से बहुत खतरनाक – 1. एक बार बंधा तो बदलेगा नहीं। 2. इसका उपशम / क्षयोपशम / क्षय नहीं होता है। मुनि
विभंग ज्ञान
इसका अर्थ… मिथ्यात्व या अनंतानुबंधी के उदय से अवधिज्ञान की विशिष्टता/ समीचीनता भंग होकर अयथार्तता आ जाती है। जीवकाण्ड-गाथा- 307
आयुबंध
शैल समान क्रोध में भी आयुबंध हो सकती है, बस इसके उत्कृष्ट में आयुबंध नहीं होगी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
संक्लेश
संक्लेश परिणामों से बार-बार अपर्याप्तक निगोदिया बनते हैं। उनका ज्ञान जघन्यतम होता है। यानि संक्लेश, अज्ञान के अनुपात में होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
संक्लेश
तीन मोड़े लेने वाले जीव का संक्लेश, उत्कृष्ट पहले मोड़े के समय तथा जघन्य योनि स्थल के करीब पहुँचने पर होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर
मति/श्रुत ज्ञान
शब्द यदि अपरिचित है जैसे सुमेर (क्योंकि जिनवाणी से सुना है, देखा नहीं) तो अर्थ का ज्ञान; यदि परिचित है तो अर्थ से अर्थांतर का
कषायों की शक्तियाँ
लोभ की शक्तियाँ – हिमराग, ओंगन, शरीर मल, हल्दी रंग (अपने आप उड़ जाता है), ऐसे ही हर कषाय की शक्तियाँ कही हैं। ये शक्तियाँ
सत्य वचन
10 प्रकार – 1. जनपद 2. सम्मति 3. स्थापना 4. नाम 5. रूप – जो दिख रहा है 6. प्रतीत्य – लम्बा/बड़ा 7. व्यवहार –
भूख
भूख लगने के…. बाह्य कारण → 1. आहार-दर्शन → भोजन करने पर भी इच्छा। 2. उपयोग → ध्यान में लाने/सोचने से। 3. कोठा खाली होने
संज्ञा
आहार संज्ञा → 6ठे गुणस्थान तक लेकिन इस गुणस्थान में हर समय आहार की इच्छा नहीं। भय संज्ञा → 8वें गुणस्थान तक पर 7वें गुणस्थान
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